भाव भँवर को पार कर , अर्पण कर सर्वस्व
जड़ता जो चेतन करे , उसका चिर वर्चस्व // 1 //
संवेदन से हीन जो , भाव भक्ति से मुक्त
प्रस्तर सम वह जड़ हृदय , अहंकार से युक्त // 2 //
मूढ़ व्यक्ति के मौन में , परिलक्षित अज्ञान
संत जनों के मौन का , मूल तत्व निज ज्ञान // 3 //
सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य
ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 //
नहिं अनंत में वृद्धि है , नहिं अनंत का ह्रास
जो सअंत निज जानता , पाता वह संत्रास // 5 //
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
प्रिय वंदना जी
दोहों के कथ्य को आपने सराहा व भावार्थ को समझने की चेष्टा की मुझे इस बात की हार्दिक प्रसन्नता है....आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
आपके लिए चौथे दोहे का अर्थ यहाँ स्पष्ट कर रही हूँ...:))
सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य
ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 //
सचेत जागृत बुद्धि ही अपने मन में उठते हर विकार (भाव लहर) को देख पाती है... (वृत्ति का नृत्य इसलिए कहा है की मन के अधीन हो मनुष्य बस नाचा नाचा ही फिरता है)... मन के विचारों को जब बुद्धि के समक्ष रखा जाता है तब ज्ञान की अग्नि (बुद्धि द्वारा की जाने वाली विवेचना) में विचारों को तपा कर सही-गलत का भान होता है...और तभी मनुष्य द्वारा किया गया कार्य उचित होता है.
आदरणीया उच्च कथ्य से सजे हुए दोहे बार-बार पढने को बाध्य कर रहे हैं।
पहला,दूसरा,तीसरा और पांचवा दोहा तो बिलकुल सुपाच्य है,पर चौथा दोहा 'दृष्ट' का अर्थ समझाने के बाद भी पूर्णतय: समझ नहीं सकी,मुख्यत: तीसरा चरण।
सादर
दोहावली प्रयास पर सराहना के लिए धन्यवाद आ० सौरभ जी
जिन दो स्थानों पर प्रवाह के लिए मुझे संशय था.. आपने वही दो अंश इंगित किये हैं...
पांचवा दोहा बहुत वक्त देने पर इस रूप में ढला है...और समय कहीं कायाकल्प न कर दे :)))) फिर भी मैं प्रयास करती हूँ :))
सादर
बड़ा गूढ़ छंद-प्रयास !! वाह !
प्रस्तर सम जड़ हृदय वह - प्रस्तर सम वह जड़ हृदय
अंतिम दोहा और समय मांगता है लेकिन कथ्य दुरूह है.. अतः कैसे प्रवहमान कीजियेगा उसे.. वो आपके माथे. .. :-)))))
दोहों के भाव और सन्देश पर आपके अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० सुशील सरना जी
ati sundr bhaavon se susajjit dohavali....is sandeshpark prastuti ke liye haardik badhaaee
हार्दिक आभार प्राची जी स्पष्ट हुआ
प्रस्तुत दोहावली का कथ्य भाव तात्पर्य सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी, आ० संदीप कुमार पटेल जी, अरुण जी .
आदरणीया राजेश कुमारी जी
बहुत बहुत धन्यवाद दोहावली सराहने के लिए...
//सजग बुद्धि को दृष्ट है ....इसमें द्रष्ट शब्द आपने किस अर्थ में लिया है ??समझा देंगी तो पढने का मजा दुगुना हो जाएगा//
दृष्ट शब्द को उसके सामान्य अर्थ 'पूर्णतः व्यक्त' में ही लिया गया है आदरणीया........
दृष्ट = वि० [सं०√दृश् (देखना)+क्त] १. देखा हुआ। २. दिखाई पड़नेवाला। ३. प्रकट या व्यक्त होनोवाला। पुं० १. दर्शन। २. साक्षात्कार। ३. सांख्य में प्रत्यक्ष प्रमाण की संख्या।
उम्मीद है अब यह दोहा आपको स्पष्ट हुआ होगा..
सादर.
प्रिय प्राची जी बहुत सुन्दर सात्विक दोहे रचे हैं सभी एक से बढ़कर एक ,एक जगह अटक रही हूँ ---सजग बुद्धि को दृष्ट है ....इसमें द्रष्ट शब्द आपने किस अर्थ में लिया है ??समझा देंगी तो पढने का मजा दुगुना हो जाएगा आपको बहुत- बहुत बधाई इन अनुपम दोहों पर.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online