1222 1222
मेरे पीछे रुधन क्यों है
ये अश्कों का बज़न क्यों है
सजाया है जनाजे पर
उधारी का कफ़न क्यों है
कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है
बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है
चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है
हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों है
मौलिक एंव अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
आदरणीय मदन मोहन जी हार्दिक आभार
aadarniya umesh ji,
atiuttam rachna, atyant marmik..
आदणीया Vandana ji हौसला अफजाई के लिये
आपका आभार
आदरणीय नादिर खान साहब गज़ल की पसन्दगी के लिये आभार
आदरणीय Atendra kumar singh ji apka tahe dil se shukriya
आदरणीया Coontee mukerji आपका हार्दिक आभार
बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है
बढ़िया कहन है आदरणीय
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय उमेश जी। । हार्दिक बधाई आपको
कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है...
सच कहा जब तक पाप का घड़ा नहीं फूटता नाकाफी ही लगता है ।
पतन इंसान का तो जारी है ... सफर में और गिरना बाकी है
बहुत अच्छी गज़ल है आदरणीय उमेश जी ..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online