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तेरे इंतज़ार का.......

एक और साल ख़त्म हुआ तेरे इंतज़ार का...
एक और जाम ख़त्म हुआ हिज़रे -ऐ-यार का
कई रिंद मर गए पीते-पीते,
साकी बता दे पता अब तू मेरे यार का
गिन-गिन के प्याला तोड़ता हूँ,
मै तेरे मैखाने में हर रोज़
कभी तो ख़त्म हो ये पैमाना तेरे इंतज़ार का

तुझे तो कातिल भी नहीं कह सकता
क्यूँ जिन्दा छोड़ दिया मुझे तड़पने को
सारे ज़माने से तनहा होगया
क्यूँ इतना तुझे प्यार किया
मुझे कहीं पागल न समझ बैठे जमाना
इसलिए थाम लिया लबो पे तेरे फ़साने को
अब तो बस घड़ियाँ गिनता हूँ,जो तुने मुझे इनाम दिया
ये तो खुदा की खिदमत है
या की मेरे प्यार का असर
जैसे जैसे समय गुज़रा,तुझे और प्यार किया
मेरी मोहब्बत इबादत बन चुकी है
की पैमाना छलक कर बह रहा है कब से तेरे प्यार का..
देखे वक़्त कबतक करता है इंतज़ार
तेरे प्यार-ऐ-इकरार का
अभी खुशियाँ मनाओ उत्सव है
सालगिरह की मुबारकबाद दो मुझे
क्यूंकि एक और साल ख़त्म हुआ
तेरे इंतज़ार का....... !

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Comment

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Comment by Biresh kumar on June 8, 2010 at 10:38pm
thanks sir for ur kind suggestion!!!!!!!

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 3:46pm
बिरेश कुमार भाई, मैं आपको इस सुंदर काव्य कृति के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ ! एक छोटा सा मशविरा है इस रचना के सन्दर्भ में "जुदाई-ऐ-यार" शब्द व्याकरण और भाषा की दृष्टि से सही नहीं है इसको "हिजर-ए-यार" कर लीजिये !
Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 3:01pm
bahut badhia
Comment by Kanchan Pandey on June 1, 2010 at 2:14pm
Biresh jee , aapki rachnao mey dhirey dhirey bahut sudhar aa raha hai, bas likhtey rahiyey, yey post bhi badhiya hai,
Comment by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:21pm
ये तो खुदा की खिदमत है
या की मेरे प्यार का असर
जैसे जैसे समय गुज़रा,तुझे और प्यार किया
मेरी मोहब्बत इबादत बन चुकी है
बहुत खूब बिरेश भाई, धन्यवाद.
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 30, 2010 at 1:37pm
तुझे तो कातिल भी नहीं कह सकता
क्यूँ जिन्दा छोड़ दिया मुझे तड़पने को
सारे ज़माने से तनहा होगया
क्यूँ इतना तुझे प्यार किया
waah biresh bhai waah......ekdam se lajawab hai aapki ye rachna....aapke lekhan me din ba din uchal aa raha hai aur aap har agli rachna me pehle se behtar likh rahe hain....bahut badhiya hai...aisehi likhte rahe....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 30, 2010 at 10:58am
जैसे जैसे समय गुज़रा,तुझे और प्यार किया
मेरी मोहब्बत इबादत बन चुकी है,
wah iresh bhai, achhi rachna hai, bahut sudhar huwaa hai aap key lekhan mey, badhiya hai, aagey bhi raheyga intjaar aapki kavitao ka,
Comment by Admin on May 30, 2010 at 9:36am
अभी खुशियाँ मनाओ उत्सव है
सालगिरह की मुबारकबाद दो मुझे
क्यूंकि एक और साल ख़त्म हुआ
तेरे इंतज़ार का.......

बहुत बढ़िया रचना है, बिरेश जी, दो बिपरीत पलो को आप ने बडे ही खूबसूरती से एक साथ समेटा है, एक तरफ तो जुदाई का ग़म भी है, पर दुसरे तरफ इन्तजार के एक साल होने पर मुबारकबाद देने की भी बात करते है, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है,

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