For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - आसमानों को संविधान भी क्या // --सौरभ

मिसरों का वज़न - २१२२  १२१२  ११२/२२

 

रौशनी का भला बखान भी क्या !
दीप का लीजिये बयान भी, क्या.. ?!
 
वो बड़े लोग हैं, ज़रा तो समझ--  
उनके लहज़े में सावधान भी क्या !
 
चाँद बस रौंदता है तारों को
आसमानों को संविधान भी क्या !

 

आपसी गुफ़्तग़ू में आईने
पूछते हैं, 'कटी ज़ुबान भी क्या' ?
 

फिर बदन में जो गुदगुदी सी हुई
भूख भरने लगी उड़ान भी क्या ?
 
पंच-परमेश्वरों की धरती पर
हो गये आज के प्रधान भी क्या !
 
बन्द कमरों की खिड़कियों से न पूछ  
था हवादार ये मकान भी क्या ?
 
क्यों न हम छूट के निभा ही लें
हर दफ़ा ये लहू-लुहान भी क्या ?

**************

--सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1414

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:13am

भाई अभिनव अरुणजी, मेरी किसी ग़ज़ल पर आपकी आमद मेरे लिए भी फ़ख़्र की बात है. ऐसे ही हौसला अफ़ज़ाई करते रहियेगा.
आपने उत्साह में एक ही शेर को दो दफ़े उद्धृत कर दिया है. या यह शेर इतना करीब गया आपके !
हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:12am

भाई सलीमरज़ा साहब, आपकी हौसला अफ़ज़ाई है कि कुछ का कुछ कहा भला लग गया.
कोशिश को नज़र में रखने के लिए आपका आभार..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:12am

आदरणीया अन्नपूर्णाजी, आप मेरी उस ग़ज़ल को गुनगुना गयीं जिसे मैं खुद सुर नहीं दे पाया हूँ. सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:12am

आदरणीय अखिलेशजी, आपकी आमद मेरे लिए भी वाइसेसुकूं है. आपका आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:12am

भाई तपन दुबेजी, आपकी पसंद के हम आभारी हैं. हृदय से धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:12am

आदरणीय राजेश मृदुजी, आपने जिस शेर को खास तौर पर उद्धृत किया है वह मेरे लिए भी गौरव के क्षण ले आया है.
आपको प्रयास रुचिकर लगा यह मेरे जैसों को भी संतोष देता है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:12am

डॉ.प्राची, आपको ग़ज़ल पसंद आयी यह मेरे लिए भी आनन्द की बात है. क़ाफ़िया कठिन नहीं हैं. बस कुछ थोड़े कम प्रचलित हैं.
प्रयास को मान देने लिए आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:11am

भाई राजबुन्देलीजी, आपकी सदाशयता है कि आपन् इअ ग़ज़ल की दिल ख्ल कर प्रशंसा की है.
हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:11am

जितेन्द्र भाई, आपको ग़ज़ल पसंद आयी इसके लिए आपको दिल से धन्यवाद कह रहा हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:11am

वीनस भाई, इस ग़ज़ल के होने में आपके अंजुमन प्रकाशन का बहुत बड़ा योगदान है. अदबघर के तरही नशिस्त में आपसभी ने इस ग़ज़ल को दिल खोल कर सराहा था और सभी से भरपूर दाद मिली थी.
यहाँ भी कुछ अश’आर उद्धृत कर आपने अपनी पसंदग़ी ज़ाहिर की है.
बहुत-बहुत धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service