For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत - नये साल की धूप // --सौरभ


आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे..
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
 
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
*********
-- सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1434

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by M Vijish kumar on January 3, 2014 at 2:09pm

बहुत खूबसूरत नवगीत आदरणीय श्रीमान जी। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 5:18pm

इस सुन्दर गीत को कई कई बार पढ़ा..पर टिप्पणी के लिए क्रमवार इस सुन्दर नवगीत तक पहुँच पाना आज ही संभव हो सका.

 

मुखड़े की पंक्तियाँ ही मन में पल रहे कई सुकोमल स्वप्नों के खिल उठने की ताजगी भरी आस जगाती हैं... और पाठक को बाँध लेती हैं 

//धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना//...........इन अर्थवान शब्दों के अन्तर्निहित भावों की नजाकत को बस महसूस ही किया जा सका है..बहुत सुन्दर 

निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे.................फोर्मेलिटीज़ के आवरण की प्रभावशाली प्रस्तुति ..वाह !

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना.................इस बंद का तो शब्द शब्द जैसे प्रिय से बात करता सा है.

मन की अन्तःभावदशा को, अपने प्रिय से कुछ कहने और कुछ सुनने की इच्छा को, कशिश को सुन्दर शब्द मिले हैं और नए साल की धूप के अपनेपन में प्रिय स्वप्नों के गेंदों सम खिल उठने की बहुत खूबसूरत आस को सहज बिम्ब में संजोया है .

इस सुकोमल सुन्दर नजाकत भरे नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:02am

आदरणीय अशोकभईजी, आपको प्रस्तुत नवगीत रुचिकर लगा यह मेे ली सौभाग्य की बात है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:00am

आदरणीय गुणशेखरजी, आपकी मुखर सदाशयता के लिए मैं हृदयतल से आभारी हूँ. आपने जिस खुले मन और उत्फुल्ल हुई तार्किकता से इस रचना को मान दिया है. वह आपकी समृद्ध समझ का परिचायक है.
आपका सहयोग बना रहे आदरणीय.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 11:57pm

भाई सलीमरज़ाजी, आपको नये साल की हार्दिक शुभकामनाएँ.
रचना आपके मुआफ़िक हो पायी है, इसकी मुझे बेहद खुशी है.
हृदय से आभार, भाईजी.

Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 9:29pm

परम आदरणीय सौरभजी आपकी लेखनी को सादर नमन,

            इस नवगीत को बार बार पढने को मन करता है. यही इस नवगीत की विशेषता है. गीत के हर बंद वैसे आपने आप में ख़ास है किन्तु निम्नवत पंक्तियाँ कुछ ज्यादा ही रुचिकर लगी है.

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

 सादर धन्यवाद

         

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2013 at 9:24pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,  विनय पूर्ण भाव  लिए  बहुत सुन्दर नवगीत के लिए सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr.G.P.Sharma'Gunshekhar' on December 25, 2013 at 2:10pm

प्रिय  सौरभ जी तुम्हारे नवगीत को पढ़ते हुए बहुत सुखद अनुभूति हुई. अपने अनूठे बिम्बों और प्रतीकों के साथ 'नए साल की धूप' तन-मन को पुलकित कर गई.सधा शिल्प और भाषा का मार्दव मन को मोहता है.

"बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना..", और

"आँखों को तुम  /और मुखर कर नम कर देना/ इसी बहाने होंठ हिलें तो/ सब कह जाना../ नये साल की धूप तनिक/ तुम लेते आना.."  .. जैसे सहज-सरल शब्दों के माध्यम से गीतकार प्रकृति प्रिया से सीधे -सीधे अपनी मानिनी मानवीय प्रिया तक की भावयात्रा में अपने मन   की हर गाँठ खोल देता है. तुम्हारे मन के भीतर बैठे इस गीतकार को बहुत-बहुत बधाई!

-डॉ. गुणशेखर

Comment by SALIM RAZA REWA on December 25, 2013 at 8:22am

आदरणीय सौरभ जी..

आपकी कविता ''नए साल की धूप'' ठंड मे भी गर्माहट का अहसास करा दी .. कई बार गीत को पढ़ डाला ..ब हुत खूबसूरत गीत के लिए ;मुबारकबाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 25, 2013 at 12:39am

आदरणीय कुन्तीजी,  आपकी प्रशंसा मेरे लिए वाकई अर्थ रखती है.

सादर धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service