2122 -1212- 112
कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या
फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या
आदमीयत के मोल जो मिली हो
दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या
और के काम आ सके न कभी
ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या
भाग के गर मुसीबतों से कहीं
बच ही जाये तो ऐसी जान भी क्या
एक चिंगारी से लगी थी आग
अब बचेगा मेरा मकान भी क्या
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया महिमा जी हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या...
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या.... आदरणीय शिज्जू जी ..बहुत ही खुबसूरत गज़ल.. बधाई आपको
आदरणीया वंदना जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या
और के काम आ सके न कभी
ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या
बहुत शानदार अशआर आदरणीय शिज्जू जी
आदरणीय लक्ष्मण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय सौरभ सर हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या
बहुत खूब
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या... . भाईजी, बहुत बढिया शेर हुआ है..
इस ग़ज़ल के लिए बधाई.. .
//एक चिंगारी से लगी थी आग
अब बचेगा मेरा मकान भी क्या//
इस बेहतरीन गज़ल के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
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