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आहत माँ का दर्द

मै जीना चाहती हूँ माँ !!

कैसे जियेगी तू मेरी बच्ची ?
समय के साथ ये सब
श्रद्धांजलि और प्रदर्शनों
के आडम्बर शांत हो जायेंगे
सब कुछ भूल, लग जायेंगे
सभी अपने अपने काम में
पर तेरा जीवन नही बदलेगा !!
   
जो बच गई
जीवन तेरा और भी नर्क हो जाएगा
तू जब भी निकलेगी घर से
तेरी तरफ उठेंगी सौकड़ों आँखे  
तू भूलना भी चाहेगी तो
दिखा – दिखा उंगुली    
लोग तुझे भूलने नही देंगे
जानना चाहेंगे सभी ये कि  
कैसे हुआ ये ?

जीवन भर तू उन दरिंदों
का लिजलिजा स्पर्श
अपने शरीर पर बिलबिलाते हुए
कीड़ों की तरह महसूसेगी
खुद ही खुद से घिन करेगी
प्रश्न करती आँखों का
सामना कब तक करेगी ?   

ये हमारा समाज
तुझे जीने नही देगा
कौन अपनाएगा तुझे ?
बोल मेरी बच्ची !
तुझे इस हाल में
मै ना देख पाऊँगी !!
 
सारा जीवन तिल-तिल कर
मरने से अच्छा
तू अभी मर जा मेरी बच्ची

तू अभी मर जा !!

मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 8:07am

मैं भावों की प्रशंसा को कहाँ से शब्द लाऊंगा
पढूंगा और तो रुआंसा खुद को पाउँगा
ये पीड़ा अकेले नहीं किसी माँ की
पिता का भी है मैं तो कहूंगा

Comment by Vindu Babu on December 20, 2013 at 6:20am

आदरणीया मीना दीदी मर्मस्थल को छू गयी आपकी यह सार्थक प्रस्तुति।

आपने उस वेदना को अभिव्यक्ति दी है जिससे माँ और बेटी दोनों ही कभी नहीं उबर पाती...समाज की अंशकालिक सहानुभूति का उसपर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं दीखता।

माँ के शब्द सच में हृदय विदीर्ण करने वाले हैं।

शुभ शुभ

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:44am

आपकी अत्यंत सशक्त कृति से गुजरना मेरे लिए भी गर्व की बात है, आदरणीया मीनाजी.

इस कविता के सारे बिम्ब और कथ्य इसकी प्रतीति और सार्थकता को कई गुणा कर रहे हैं.

हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ

Comment by कल्पना रामानी on December 19, 2013 at 9:53pm

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीया मीना जी, लेकिन एक माँ से जो आपने कहलाया है उससे मैं बिलकुल सहमत नहीं हूँ कोई भी  माँ कभी ऐसा नहीं कह सकती वो तो संतान को हौसले के साथ जीना और क्रूर समाज का सामना करने की हिम्मत देती है....   

Comment by vijay nikore on December 19, 2013 at 7:16pm

//ये हमारा समाज
तुझे जीने नही देगा
कौन अपनाएगा तुझे ?
बोल मेरी बच्ची !
तुझे इस हाल में
मै ना देख पाऊँगी !!//.......

उदात्त भावों से भरी उदात्त रचना के लिए अशेष सराहना।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by Maheshwari Kaneri on December 18, 2013 at 7:14pm

सुंदर और मार्मिक प्रस्तुति पर  बधाई .

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:33pm

सचमुच!! कैसी विडम्बना है, देवी पूजक देश में हमारी बच्चियां सम्मान के साथ जीने का हक़ भी नहीं रखती आज....

मर्मस्पर्शी रचना हेतु सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना जी..

Comment by Meena Pathak on December 17, 2013 at 11:27pm

आदरणीया अन्नपूर्ण जी रचना के भाव आप के दिल तक पहुंचे मेरा लिखना सफल हुआ |सादर आभार आप का

Comment by Meena Pathak on December 17, 2013 at 11:25pm

आदरणीया प्राची जी इस रचना को लिखे मुझे एक वर्ष हो गया, जब सभी उसे बचाने की प्रार्थना कर रहे थे और 'उसने' भी कहा था कि "माँ मै जीना चाहती हूँ" तब एक माँ के दिल से जो कराह निकली थी ये रचना उसी का नतीजा है |

रचना आप के दिल तक पहुँची मेरा लिखना सार्थक हुआ | बहुत बहुत आभार आप का प्राची जी | सादर

Comment by annapurna bajpai on December 17, 2013 at 11:01pm

ओह !! 

इस यथार्थ को प्रस्तुत करने के लिए आपको शुभकामनायें , आ0 मीना जी । 

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