किसी से प्यार करके देख लो जी
हसीं इकरार करके देख लो जी /१
दवा है या मरज़ क्या है मुहब्बत
निगाहें चार करके देख लो जी /२
सनम हैं सर्दियों की धूप जैसी
जरा दीदार करके देख लो जी /३
हमेशा जी-हुजूरी ठीक है क्या ?
कभी इनकार करके देख लो जी /४
बिकेगी धूप चर्चा है गली में
यही ब्योपार करके देख लो जी /५
बहुत है फायदा आवारिगी में
धुआं घर-बार करके देख लो जी /६
यक़ीनन बेशरम हूँ मैं हवा हूँ
खड़ी दीवार करके देख लो जी /७
..................................................
अरकान : १२२२ १२२२ १२२
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपको ग़ज़ल पसंद आई ...जानकर बढ़िया लगा आदरणीया Dr.Prachi Singh जी ...! स्नेह के लिए दिली शुक्रगुजार हूँ ! सादर :)
एक अलग सी ग़ज़ल...
मुझे पसंद आयी.
//ब्योपार//....व्यापार कर लीजिये
हार्दिक बधाई स्वीकारें इस ग़ज़ल पर
सादर प्रणाम आदरणीय Saurabh Pandey जी .... बहुत बहुत धन्यवाद इस ग़ज़ल पर आने के लिए !...आपका मार्गदर्शन नितांत आवश्यक है हमारे लिए ! आशीष देते रहिएगा ...स्नेह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ आपका :)
एक प्रयोगधर्मी ग़ज़ल के लिए बधाई. लेकिन एक बात अवश्य, कि प्रयोग ही करना था तो बिम्ब और सार्थक् लेकर नये खयालात से अह’आर को आबाद करते.
बहरहाल बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें
शुभेच्छाएँ
आदरणीया coontee mukerji जी ....आशीर्वाद है आप का ! स्नेह देते रहिएगा ...सादर नमन सहित :)
सुना- है फायदा आवारिगी में
धुआं, घर-बार करके देख लो जी /७...........बहुत सुंदर.
आदरणीय Abhinav Arun साहब , सादर प्रणाम ! बहुत अच्छा लगा आपका स्नेह पाकर ! सिखलाते रहिएगा ! जो कुछ भी लिख पा रहा हूँ इसी महफ़िल की इनायत है ...कोटिशः आभार सहित :)
सुना- है फायदा आवारिगी में धुआं, घर-बार करके देख लो जी /७ ये दफ्तर की दुहाई, आज छोड़ो मियां बीमार करके देख लो जी /८ अकेले ‘आप’ भी क्या कर सकेंगे नई सरकार करके देख लो जी /९ यक़ीनन बेशरम हूँ, मैं हवा हूँ खड़ी दीवार करके देख लो जी /१० ------------------प्रयोग में सफल रहे हैं आदरणीय बैद्यनाथ जी , सुन्दर और सशक्त ग़ज़ल है , हार्दिक बधाई !!
मान्यवर AVINASH S BAGDE जी , चरण स्पर्श कर रहा हूँ ! नाचीज को स्नेह के काबिल समझा ...शीश नत हूँ ! सीख रहा हूँ ...आप हजरात से ही ..इसी महफ़िल में ! बहुत बहुत दिली शुक्रिया अदा कर रहा हूँ ! सादर नमन सहित आदरणीय :)
महोदय अरुन शर्मा 'अनन्त' ...मुहब्बतों के लिए ममनून हूँ ! स्नेह है आपका जो ग़ज़ल को आपने नवाजा ! बहुत बहुत मेहरबानी ! साथ बने रहिएगा साहब ...कोटिशः आभार सहित :)
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online