बाबा की दहलीज लांघ चली
वो पिया के गाँव चली
बचपन बीता माँ के आंचल
सुनहरे दिन पिता का आँगन
छूटे संगी सहेली बहना भैया
मिले दुलारी को अब सईंया
मीत चुनरिया ओढ़ चली
बाबा की ................
माँ की सीख पिता की शिक्षा
दुलार भैया का भाभी की दीक्षा
सखियों का स्नेह लाड़ बहना का
वो रूठना मनाना खेल बचपन का
भूल सब मुंह मोड चली
वो पिया के ...............
परब त्योहार हमको बुलाना
कभी तुम न मुझको भुलाना
साजन संग मै आऊँगी
खुशियाँ संग ले आऊँगी
वो लाड़ली चली
बाबा की ..................
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आ0 कुंती दीदी आपका आभार ।
आदरणीया बेहद सुन्दर मधुर गीत खूबसूरत दृश्य उकेरा है हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति आपको बहुत बहुत बधाई.
एक बिटिया बचपन की सारी खुशियाँ छोड़ बिदा हो जाती है नये सपने लिए। बधाई आ० अन्नपूर्णा जी इस सुंदर रचना के लिए।
सुंदर मर्मस्पर्शी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी
सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति। बधाई।
दिल को छू देने वाली रचना.हार्दिक बधाई.
आपका हार्दिक आभार आ0 बागी जी ।
बहुत ही सुन्दर गीत हुआ है, विदाई का दृश्य आखों के सामने आ जाता है, अंतिम बंद में फेरों के पहले दिलाये जाने वाले वचन याद आ गए, बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेयी जी .
आ0 श्याम नारायण जी आपका हार्दिक आभार ।
आ0 डॉ गोपाल नारायण जी आपका हार्दिक आभार ।
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