स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………
"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"
"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया देकर कम्बल वापस ……… "
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
.......क्या ऐसा भी होता है....वेरी बेड.
सुन्दर रचना, सटीक प्रहार !
बधाई आदरणीय बागी जी !
बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना पाठक जी ।
ना ना आदरणीया, रेड बत्ती कार कह कर मैं दायरे को संकुचित करना नहीं चाहूँगा, आपको लघुकथा अच्छी लगी यह मेरे लिए उत्साह की बात है, बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ।
सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव, आपकी प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद लघुकथा मुझे पहले से अच्छी लगने लगी, यह USP नहीं समझ सका आदरणीय, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
आदरणीय बागी जी शीर्षक से न्याय करती एवं सच्चाई से रूबरू करवाती आपकी लघु कथा हेतु आपको बहुत बधाई ।
आदरणीय अनुराग जी, प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय शिज्जु शकूर जी,लघुकथा आपको पसंद आयी, लेखन कर्म सार्थक लगा,आभार आपका .
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