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बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 8:08pm

आदरणीय वीनस जी आपका बहुत -२ आभार  ... एक साधारण सी कोशिश है ..रूचि तो . ओबिओ पर आप जैसे विद्वजनो के कारण ही  उत्पन्न हुयी है .. सादर 

Comment by वीनस केसरी on December 25, 2013 at 7:57pm

बहुत खूब
आप ग़ज़ल भी कहती हैं ये पता न था ... पढ़ कर अच्छा लगा

कृपया ध्यान दे...

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