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चितवन

1
सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास
रात की रानी महके
हरसिंगार की झूमर लहके
तारों की बरात लिये
आया कोई पुच्छल तारा
देख सुहानी रात मतवाली
पैरों बाँध घुँघरू
बिरहनी संग यह कैसा परिहास

2
बहक रहा चाँद
लहरों पर थिरक रही चाँदनी
सागर तट पर नाच रहा पवन
बाँध के पैजन
चट्टानों के गृह सखी
चल रहा सम्मोहन
बिन पिया कैसे हो हिय उल्लास

3
दूर गगन से
कोई बाँसुरी पुकारे
हृदय का पट खोल
अंतर में मोह जगाए
कैसा यह उच्छवास
रूक जादूगर! सम्भल जरा
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 26, 2013 at 12:23pm

wah aa.Coonti jee chitvan ke hr bhaag ne laajwaab kr diya...bhaavon ka sundr prastutikaran...ati sundr...haardik badhaaee kabool krain

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2013 at 6:56am

सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास

आदरणीय कुंती बहन , अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारे

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