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दर्द (तीन मुक्‍तक)

(1)

 

दर्द ए दिल से पहचान यारो मेरी बहुत पुरानी है

आँखो के अश्‍को की यारो देखो अलग कहानी है

थे पास जब वो मेरे जीवन की अलग रवानी थी

नहीं आयेगी जीवन में बीती शाम जो सुहानी है

 

(2)

मेरे भी दर्द ए दिल को काश कोई  जान लेता
आँखो में छुपे अश्‍को को भी काश जान लेता
कितना दर्द यारो हमें बिछुडने का अपनो से
मेरे दर्द भरे शब्‍दे से ही काश कोई जान लेता

 

(3)

किसने किसको दर्द दिया  ना जान पाया मैं

कैसे टूटे स्‍वपन सुहाने ये  ना जान पाया मैं

किसकी नजर लगी जो रूठ गये है वो हमसे

लौटेगा दिन सुहाना ये भी ना जान पाया मैं

 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Akhand Gahmari on December 27, 2013 at 10:06am

आदरणीय  ram shiromani pathak जी उत्‍साहवर्धन एवं आपके मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

Comment by Akhand Gahmari on December 27, 2013 at 10:05am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी उत्‍साहवर्धन एवं आपके मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

Comment by Akhand Gahmari on December 27, 2013 at 10:05am

आदरणीया coontee mukerji जी उत्‍साहवर्धन एवं आपके मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 8:08am

आदरणीय अखंड भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण मुक्तक  के लिये बधाई ॥

Comment by coontee mukerji on December 27, 2013 at 3:00am

तीनों मुक्तक दर्द के शीराओं में पगे हुए......क्या कहूँ जो कह न .सकूँ आदरणीय अखंड जी.

Comment by ram shiromani pathak on December 27, 2013 at 12:39am

अखंड भाई सुंदर भाव प्रयासरत रहें। …  शुभ शुभ 

Comment by कल्पना रामानी on December 26, 2013 at 8:03pm

सुंदर भाव आदरणीय, हार्दिक बधाई आपको

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 26, 2013 at 1:29pm

अखंड भाई हार्दिक बधाई । मुक्तक  भावपूर्ण है लेकिन प्रवाह बाधित है । कहीं टंकण त्रुटि भी है। .... सादर ।

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