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नवगीत/ नए साल की आहट पाकर

इन गुलाब की पंखुड़ियों पर

जमी

ओस की बुँदकी चमकी   

नए साल की आहट पाकर

उम्मीदों की बगिया महकी

 

रही ठिठुरती

सांकल गुपचुप

सर्द हवाओं के मौसम में

द्वार बँधी 

बछिया निरीह सी

रही काँपती घनी धुँध में

 

छुअन किरण की मिली सबेरे

तब मुँडेर पर चिड़िया चहकी

 

दर-दर भटक रही

पगडंडी

रेत-कणों में

राह ढूँढती

बरगद की

हर झुकी डाल भी

जाने किसकी

बाँट जोहती

 

एक उदासी ओढे थी जो

नदिया की वह धारा हुमकी

.

- बृजेश नीरज

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 11:04pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! मैं प्रतीक्षारत हूँ!

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 10:51pm

वाह् !..

फिर से आता हूँ, बृजेशभाई.. इत्मिनान से..

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 8:35pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 8:17pm

आदरणीय बृजेश भाई , बहुत सुन्दर नव गीत रचना की है आपने , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 8:09pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2013 at 7:31pm

बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीय ब्रिजेश जी बहुत -२ बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 7:28pm

 आदरणीय शिज्जु जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:24pm

//इन गुलाब की पंखुड़ियों पर

जमी

ओस की बुँदकी चमकी   

नए साल की आहट पाकर 

उम्मीदों की बगिया महकी//  वाह आदरणीय बृजेश जी बहुत बढ़िया,  नवगीत की बेहद खूबसूरत शुरुआत हैl बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 5:29pm

आदरणीय श्याम जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 5:28pm

आदरणीय गोपाल जी आपका हार्दिक आभार! आपके प्रोत्साहन से बहुत बल मिला!

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