For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमारी तबाही की साजिश में एक दो नहीं हज़ार निकले (ग़ज़ल)

जब भी उनपे दांव खेला हम हारकर हर बार निकले,

हमारी तबाही की साजिश में एक दो नहीं हज़ार निकले.

 

रो भी ना पाये यह जानकर अपनी बे-अख्तरी पे,

फिरते रहे जिनकी तलब में वो अपने ही तलबग़ार निकले.

 

क्या बयां करे कोई वो मंजर कागज़--कलम से,

जब बूंद-बूंद रिस कर दिल से करार निकले.

 

इल्जाम था हम पर सर--आम उनकी इत्लाफ़ियत का,

जब तफ़तीश हुई तो हम उनके ही ग़म-गुसार निकले.

 

वो जानते हैं जिस गली को दिल-दोजों की हैसियत से,

उन्ही गलियों में से जाने कितने ग़म-ख्वार निकले.

 

एक लाज़िमी सी हैरानीयत थी उनके चश्म में, जब

कूचे में रह कर भी हम उनके ख्वाबदार निकले.

 

शुमार हो जायें हम भी वफ़ा के अर्ज़मंदो में,

जो बज़्म--शबा में किश्तों में हर असरार निकले.

 

एहसानमंद हैं आजकल ख़ुद ही, ख़ुद से, ख़ुद के लिये,

वो अपने वजूद को लेकर कुछ इतने फ़िगार निकले.

 

क्यों मिले उस कत्ल में किसी कातिल का गिरेबां "साहब",

जब कोई अपने कत्ल का ख़ुद ही गुनहगार निकले.

मौलिक व अप्रकाशित

___"मलेन्द्र कुमार"

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Malendra Kumar on January 25, 2014 at 1:49am

सबसे पहले मैं आपके सुझावों पर देरी से प्रतिक्रिया के लिये माफ़ी की उम्मीद करता हूँ...
आप सभी को मेरे इस छोटे प्रयास पर हौसला अफजाई के लिये दिल से शुक्रिया कहना चाहूँगा.
अनुभवी व आदरणीय शिज्जु शकूर जी,  विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी, अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, Saurabh Pandey जी, के सुझावों व मार्गदर्शन के लिये उनका आभारी रहूँगा. भविष्य में ऐसी त्रुटियाँ न हो इसके प्रयास के साथ ही मैं गजल की कक्षा से इसकी बारीकियों को समझने की कोशिश भी करूँगा. 
मेरी रचना को पढने व आपके बहुमूल्य सुझावों के लिये एक बार फिर से आप सभी को धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:41pm

इस मेहनत पर हार्दिक शुभकामनाएँ ..

सुझावों पर ध्यान दें. शुभेच्छाएँ.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 4, 2014 at 7:34pm
कुछ तो गड़बड़ है।
गजल की कक्षा में पहुँचने पर ही पता चलेगा
Comment by अरुन 'अनन्त' on January 2, 2014 at 11:28am

भाई मलेंद्र जी बह्र में गड़बड़ी है कृपया अवगत करायें तकरीबन चार शेरों में तकाबुले रदीफ़ का दोष है, पढशाला में  जा कर ग़ज़ल का अध्ययन करें. सादर

Comment by Abhinav Arun on January 2, 2014 at 9:50am

अच्छी ग़ज़ल , हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 7:26am

आदरणीय मलेन्द्र भाई,

खूब सूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2014 at 12:54pm

भाई मलेन्द्रजी ग़ज़ल की कोशिश अच्छी है, ग़ज़ल के मूलभूत नियमों का सतत अध्ययन एवम अभ्यास प्रयास को सार्थक करेगा।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 11:58am

आदरणीय मलेन्द्र भाई, खूब सूरत गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ आदरणीय बह्र लिख दिया करें , हम सीखने वालों को समझने मे आसानी होती है ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service