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जब से उनका यहाँ आना जाना हुआ
दिल हमारा भी उनका दिवाना हुआ /


साथ तेरे का जो छूट जाना हुआ
तब से सबका यहाँ आना जाना हुआ /


माँग तेरी भरूं आ सितारों से मैं
ऐसा कह जो गया फिर न आना हुआ /


माँग सूनी हुई जो सितारों भरी
माथे की बिंदी छिनना बहाना हुआ /


राहतें अब कहाँ चैन दिल को कहाँ
मत कुरेदो जख्म ये पुराना हुआ /


याद आती रही रात भर थी मुझे
भूल वो अब गया इक जमाना हुआ /


उसके आने की टूटी है उम्मीद अब
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ /


लाडली ही रही बेटियाँ बाप की
लाड़ छूटे जो पति घर ठिकाना हुआ /

..............................................

........मौलिक व् अप्रकाशित........

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 10, 2014 at 9:44am

मर्मस्पर्शी भाव आपकी ग़ज़ल के आ० सरिता जी 

शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 9, 2014 at 12:23am

आदरणीया, आपकी ग़ज़ल को मात्रिकता के हिसाब से सही कह लूँगा लेकिन कहन को अभी और पुख़्ता होना है.

सादर

Comment by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 9:15pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी तह दिल से शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 9:14pm

आदरणीय ब्रिजेश जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 9:13pm

अरुन आपके मार्गदर्शन बिना यह मुमकिन नहीं था ,स्नेह बनाये रखें 

Comment by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 9:12pm

आदरणीय जितेन्द्र जी शेर पसंद आया उसके लिए शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 9:10pm

आदरणीय कवि राज जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 9:07pm

आदरणीय श्याम जी हार्दिक आभार 

Comment by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 8:25pm

लाडली ही रही बेटियाँ बाप की
लाड़ छूटे जो पति घर ठिकाना हुआ / ........... वाह !! अति सुंदर , बहुत बधाई आपको आ0 सरिता जी । 

Comment by बृजेश नीरज on January 4, 2014 at 10:43pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

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