ग़ज़ल
फाइलातुन फइलातुन फैलुन \ फइलुन
२१२२ ११२२ २२ \ ११२
वर्ना अन्जान शहर लगता है
माँ जो होती है तो घर लगता है |
दौर कैसा है नई नस्लों का,
वक़्त से पहले ही पर लगता है |
है इधर रंग बदलती दुनिया,
मैं चला जाऊं उधर लगता है |
जाने किस दर्द से गुज़रा होगा ,
शेर जज़्बात से तर लगता है |
इस ऊंचाई से न देखो मुझको ,
दूर से सौ भी सिफर लगता है |
इन चटख फूलों में मकरंद नहीं ,
ये दवाओं का असर लगता है |
इन घरोंदों में ये ख़ामोशी क्यों ,
कागज़ी है ये शजर लगता है |
खाप पंचायतें हैं घर घर में
इश्क़ के नाम से डर लगता है |
जाने किस बात पे खंज़र निकले
बात करते हुए डर लगता है |
* सर्वथा मौलिक \ अप्रकाशित
- ०२०१२०१४ (C)&(P) - अbhinav अrun
Comment
शुक्रिया आ. चंद्रशेखर जी और नूतन वर्ष की बहुत शुभकामनायें आपको !!
बहुत ख़ुशी हुई आदरणीय श्री अरुण अनंत जी , आभार और अभिवादन आपका
आदरणीय श्री सारथी जी आपने हौसला बढ़ाया बहुत शुक्रिया
आदरणीय श्री ब्रिजेश जी बहुत शुक्रिया आपका
परम आदरणीय श्री विजय निकोरे साहब आपका आशीष मिला आभारी हूँ , सादर नमन !!
बहुत खूबसूरत खयाल हैं। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
बेहद कमाल के अशआर हैं सारे जनाब ...किसका नाम लूँ
वर्ना अन्जान शहर लगता है
माँ जो होती है तो घर लगता है |
जाने किस दर्द से गुज़रा होगा ,
शेर जज़्बात से तर लगता है |....बहुत उम्दा साहब ..बहुत उम्दा
आदरणीय भाई जी वाह वाह वाह मतले ने ही वाह वाही लूट ली है, एक एक शेर अत्यंत खूबसूरत बन पड़ा है बेहद शानदार हृदयस्पर्शी ग़ज़ल हेतु ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.
बहुत खूब आदरणीय! नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online