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सादर प्रणाम अग्रज श्री !!
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ भाई अभिनव अरुण जी
अर्दिक आभार आदरणीया सविता मिश्र जी बहुत शुक्रिया !
देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,
हमने अपने शहरों को वीरान किया |....सुन्दर
सभी में एक से बढ़कर एक सच्चाई बयान की है आपने
सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,
सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |
बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय
जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,
अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया | वाह वाह !!
दूषित होकर भी गंगा गंगा ही है ,
बेशक हमने अपना ही नुक्सान किया |
वृद्धाश्रम में नाम लिखाकर भूल गए ,
हमने अपनों का ऐसा सम्मान किया | बेहतरीन !
इस लाजवाब ग़ज़ल पर दिली दाद आदरणीय !
देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,
हमने अपने शहरों को वीरान किया |....नवीन लगा ये बिम्ब ...वाह
बाहर बाहर उन्नतशील लबादे हैं
भीतर भीतर मूल्यों को शमशान किया |....बहुत बढ़िया अभिनव अरुण साहब ...वाह
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