दीवाने भी अज़ब हैं वो जो महफ़िल लूट लेते हैं ।
के सिर कदमों में रखते हैं और दिल लूट लेते हैं ।
कि जिन लहरों के तूफानों ने लूटी कश्तियाँ लाखों ,
उन्हीं लहरों के आवेगों को साहिल लूट लेते हैं ।
शाख से टूटकर अपनी बिखर जाते हैं जो तिनके ,
बनाने को घरौंदे उनको हारिल लूट लेते हैं ।
अदब तो दोस्ती का है पर अदायें दुश्मनों सी हैं ,
के हमारा चैन उनके नैन कातिल लूट लेते हैं ।
मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है ,
यहाँ तो दर्द के कतरे भी संग दिल लूट लेते हैं ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम'
Comment
आदरणीय प्रेम भाई , प्रेम बड़ी चीज़ है , जो बन्धन होते हुये भी आपको बंधन का एहसास नही होने देता , क्योकि प्रेम के वश मे बंधन को स्वीकार किये होते हैं , खुशी खुशी । मेरा आपसे यही निवेदन है , अगर आपको गज़ल विधा से प्यार है तो आपको बंधन का एहसास ही नही होगा , न ही होना चाहिये । और आप सीख भी जल्दी ही लेंगे । लेकिन अगर प्यार नही है तो बोझ समझ कर ग़ज़ल सीखने मे बहुत मुश्किल होगी / आयेगी । मज़बूरी के रिश्ते बोझ ही लगते हैं । आदरणीय वीनस भाई का कहना सही है , निर्बंध हो के भी आप अपने भावों को व्यक्त कर सकते है , गद्य के रूप में , आपने अच्छे से किया भी है ! अगर आप विधा स्वीकारते हैं तो प्रेम से खुशी से स्वीकार करें तभी सीखना सार्थक और सफल होगा ॥ सादर ॥
भाई नीरज मिश्रा "प्रेम" जी अगर कविता में आज़ादी के पक्षधर हैं तो वैसा ही लिखिए जैसा ये पिछला कमेन्ट लिखा है ,,
जिस तरह आपने इस कमेन्ट को लिखते समय कोई मात्रा नहीं जोड़ी कोई बंधन नहीं रखा ,, बस भावनाओं को पटल पर प्रस्तुत कर दिया ... ये बहुत अच्छा उदाहरण बन सकता है ... अपनी कविता भी ऐसी ही लिखिए ,, हर बंधन से मुक्त,,, कविता का गणित कठिन ही नहीं बहुत कठिन है ... नियम पेचीदा हैं
महफ़िल लूट लेते हैं / दिल लूट लेते हैं ... के चक्कर में पड़ कर आप क्यों तुकांतता का बंधन पाले बैठे हैं .... और अगर सच में ये रोग आपको प्रिय है तो फिर इसकी हद से गुज़ारना चाहिये ... बहर को जान समझ लीजिये तो रचना को विधागत संज्ञा प्राप्त हो जाए ... वर्ना ऐसी रचनाओं को जानकारों ने "तुकबंदी" संज्ञा तो दे ही रखी है .... मगर ये संज्ञा अक्सर कवियों के क्षोभ का कारण बनती है
शुभकामनाएं
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
कभी अपनी चतुराई अपनी होशियारी से दूर अपनी बुद्धि के तर्कों और गणित आदि जंजालों
से मुक्त अपने ह्रदय के द्वार पर अपनी निर्दोष अवस्था में अपनी मासूमियत में स्वयं को सुकून
में डुबो देने वाला गायन कला का एक द्वार खोजा था एक गायक कि तरह नही बल्कि एक भावनाओं
को सहेजने वाले किसी कवि कि तरह जहाँ मै पूरी ईमानदारी से खुद को रख सकूँ जहाँ मै हिसाब किताब
के बंधनो से मुक्त रहूँ जहां आकाश में उड़ते हुए किसी पक्षी कि तरह खुद को महसूस कर सकूँ जो दिल में आये
बस गुनगुनाता जाऊँ और सबकुछ भूलकर डूब सकूँ अपनी पंक्तियों को बार बार गाकर अपनी अस्मिता को
खो सकूँ क्यों कि अस्मिता में बहुत पीड़ा पायी मैंने , सोचा नही था जाना नही था यहाँ भी गणित चलता है
यहाँ भी हिसाबों में ही रहना पड़ता है यहाँ भी दायरे हैं यहाँ भी छते हैं यहाँ भी सिमट कर ही रहना होगा
यहाँ भी अनंत फैलाव नहीं उपलब्ध होता है खैर मैंने आप सबों कि तरह बहुत कुछ सीखने का प्रयास किया है
और आप सब लोगों से ही बहुत सारा लगाव भी हो रखा है आप सब लोगों से । झूठी अन्जानी दुनिया कि भीड़ में आप सब जैसे
कुछ लोग जाने पहचाने लगते हैं इस लिए देखना चाहता हूँ कविता का गणित भी सीख कर और सतत प्रयास भी करूंगा
फिलहाल मैंने कि कोशिश कि है आप देख लें और अगर गलत बनी हो तो फिर कोशिश करूंगा। ……।
दीवाने भी अज़ब हैं वो जो महफ़िल लूट लेते हैं ।
2222 2122 2222 2122
आदरणीय सम्पादक जी बहुत बहुत अनुग्रहीत हूँ आपसे और मै बहुत शीघ्र ग़ज़ल कक्षा में इस दोष का अध्ययन करके
ठीक करने का प्रयास करूंगा सादर
आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
आदरणीय बृजेश जी बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय आमोद जी बहुत बहुत आभार ।
आदरणीया कुंती जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
आदरणीय कविराज बुंदेली जी बहुत बहुत आभार ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online