For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंगा चुप है ...................

वेगवती गंगा प्रचंड प्रबल  

लहराती, बल खाती जाए

रूप चाँदी सा दूधिया धवल

जनमानस  तारती  जाए

 वो गंगा !! आज चुप है ..............

हे ! मानस किञ्च्त जागो

भागीरथी की व्यथा सुनो

तुमको तो जीवन दिया है

किन्तु  तुमने क्या दिया है

व्यथित गंगा !! आज चुप है ................

आंचल मैला किए देते हो

मुख मे भी विष दिये देते हो

चाँदी सा रूप हुआ क्लांत

सौम्यता भी हुई म्लान्त

म्लान्त गंगा !! आज चुप है ................  

जननी जग की कहलाती हूँ

आते हो स्वागत करती हूँ

नित  पाँव पखारा करती  हूँ

फिर क्यों तुम्हें न सुहाती हूँ

जीवन दायिनी गंगा !! आज चुप है ..................

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 10, 2014 at 11:45pm

इस कविता के माध्यम से गंगा की दशा को साझा करने के लिए आभार

सादर

Comment by annapurna bajpai on January 7, 2014 at 11:18pm

आ0 बैद्य नाथ जी , आ0 गिरिराज जी , आ0 कुंती दीदी , आ0 ब्रम्ह्चारी जी , आ0 निकोर जी आप सभी का हार्दिक आभार । 

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 9:12am

अति मार्मिक प्रस्तुति। बधाई। जय श्री माँ गंगे !

Comment by S. C. Brahmachari on January 6, 2014 at 10:29pm
राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियों के पाप धोते धोते ---- पतित पावनी गंगा का क्या हाल कर रक्खा है इंसान ने , गंगा आचमन के लायक भी नहीं रह गयी । किससे करूँ शिकायत ? गंगा किनारे स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे अध्ययन के दौरान हमारे एक कवि मित्र ने लिखा था --- गंगा मैया के तट पर बस कर भी मै रह गया पिपासा, अपने प्यासे अधर दिखा कर सागर से यह बात कहूँगा ! बहन अन्नपूर्णा जी , माँ गंगा की व्यथा के मार्मिक चित्रण हेतु बधाई !
Comment by coontee mukerji on January 6, 2014 at 5:42pm

एक बहुत ही मार्मिक रचना. अंपूर्णा  जी हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 7:37am

आदरणीया अन्नपूरणा जी , माँ गंगा की आंतरिक व्यथा का सुन्दर चित्रण किया है आपने , आपको बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on January 5, 2014 at 11:14pm

बहुत ही उत्तम रचना ...सार्थक अभिव्यक्ति ...जो हर भारतीय के ह्रदय की वेदना है ..

आंचल मैला किए देते हो

मुख मे भी विष दिये देते हो

चाँदी सा रूप हुआ क्लांत

सौम्यता भी हुई म्लान्त

म्लान्त गंगा !! आज चुप है......बहुत बहुत बधाइयाँ 

Comment by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 8:34pm

आपका हार्दिक आभार आ0 अखिलेश जी । 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 5, 2014 at 8:29pm

पतित पाविनी की व्यथा सुनाई , आदरणीया अन्नपूर्णाजी हार्दिक बधाई॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service