वज़न २२१२ २२१२ २२१२ १२
उसने दिया इनकार का पैग़ाम उम्र भर
हाँसिल नहीं कुछ बस हुआ बदनाम उम्र भर
ये मुद्दतों की प्यास है मिटती अबस तभी
अपनी नज़र से जब पिलाती जाम उम्र भर
आग़ाज़ मोहब्बत का था जब दर्द से भरा
लाज़िम मुझे सहना ही था अंजाम उम्र भर
बस एक तिरी ख्वाहिश में खोया वजूद तक
ये ज़िन्दगी भी रह गई बे-नाम उम्र भर
दिल की तिजारत दर्द से बिस्मिल किया किये
उल्फत में बस ये ही रहा एक ख़ाम उम्र भर
**( अय्यूब खान "बिस्मिल")**
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
bahut khoob..........हाँसिल .....shabdh dekh le.........
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