बाप के जूते
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जब से
बाप के जूते
बच्चों के पैरों में
आने लगे हैं ,
वो सही ग़लत
बाप को ही
समझाने लगे हैं ।
बुजुर्ग बाप
अपने जीवन भर के
अनुभवों की थाती लिये
अब
किसी कोने लगा है ।
अपनी असहायता पर ,
अनुपयोगिता पर
कोने लगा ,
रोने लगा है ।
खा रहा है रोटियाँ
अकेलेपन के साथ
इसलिये कि वो ज़िन्दा है
वैसे अब जीवन में
कुछ धरा नही है ।
वो ज़िन्दा इसलिये है
क्योकि , वो
मरा नही है ।
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सत्य नारायण भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ !
आदरणीय अजय भाई , आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय बैद्यनाथ भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय अभिनव अरुण जी , रचाना की सराहना के लियेआपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय शिज्जू भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीया कुंती जी , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
सटीक सत्यता से भरपूर रचना के लिए बधाई मेरे भाई।
वो ज़िन्दा इसलिये है
क्योकि , वो
मरा नही है । sab kuch hi kah diya ...........sir ji .............dil ko chooo gaya
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