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बाप के जूते - अतुकांत (गिरिराज भंडारी)

बाप के जूते

***********

जब से

बाप के जूते

बच्चों के पैरों  में

आने लगे हैं ,

वो सही ग़लत

बाप को ही

समझाने लगे हैं  ।

बुजुर्ग बाप

अपने जीवन भर के

अनुभवों की थाती लिये

अब

किसी कोने लगा है ।

 

अपनी असहायता पर ,

अनुपयोगिता पर

कोने लगा ,

रोने लगा है ।

 

खा रहा है रोटियाँ

अकेलेपन के साथ

इसलिये कि वो ज़िन्दा है

वैसे अब जीवन में

कुछ धरा नही है ।

 

वो ज़िन्दा इसलिये है

क्योकि , वो

मरा नही है ।

************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 2:02pm

आदरणीय सत्य नारायण भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 2:01pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 2:00pm

आदरणीय अजय भाई , आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 2:00pm

आदरणीय बैद्यनाथ भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 1:59pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी , रचाना की सराहना के लियेआपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 1:58pm

आदरणीय शिज्जू भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 1:57pm

आदरणीया कुंती जी , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Satyanarayan Singh on January 7, 2014 at 1:49pm
सच्चाई को बयां करती खूबसूरत रचना के प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय
Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 9:16am

सटीक सत्यता से भरपूर रचना के लिए बधाई मेरे भाई।

Comment by ajay sharma on January 6, 2014 at 10:44pm

वो ज़िन्दा इसलिये है

क्योकि , वो

मरा नही है ।    sab kuch hi kah diya ...........sir  ji .............dil ko chooo gaya 

कृपया ध्यान दे...

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