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जो गुज़र गया वो गुज़र गया ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212  11212  11212   11212

 

उसे भूल जा तू न  याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया

जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया

 

यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि  उजड़ गया है मेरा चमन 

मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया

 

सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब

मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर  गया

 

ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है

तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया 

 

तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर

मुझे उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 1:23am

इस कठिन बह्र में आपकी बहुत अच्छी कमांड है आ. गिरिराज सर .... ये ग़ज़ल बहुत ही उम्दा है ....बस गुनगुना रहा हूँ और आपको दिल से दाद दे रहा हूँ.... इस शानदार बहर में लाजवाब ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:30pm

आदरणीय वीनस भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !! तूने के विषय मे सोच रहा हूँ , क्या किया जा सकता है ,फिर संशोधन कर लूंगा ॥ आपका पुनः शुक्रिया ॥

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:47am

बहर पर आपकी गहरी पकड़ की शानदार मिसाल बन कर यह ग़ज़ल मेरे सामने आ खड़ी हुई है ,,,...

इस शानदार बहर और लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद क़ुबूल फरमाएं

आदरणीय, तूने को तू ने लिखते हुए ११ कर लेने पर पुनः विचार कर लें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:32am

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी सीख का ही परिणाम है , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ॥ सीख और सलाह के लिये अलग से तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:28am

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , गज़ल को आपका अनुमोदन मिला , बड़ी खुशे हुई !! आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 11:20pm

बढिया है अब.  वही है न ?

सादर

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:40pm

वाह!वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी  बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2014 at 8:37pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 13, 2014 at 7:35pm

बहुत खूब गिरिराज जी, अच्छे अश’आर हुए हैं, दाद कुबूल कीजिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2014 at 4:09pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

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