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बह्र : हज़ज मुरब्बा सालिम


सदा दिन रात भिनसारे,
गिरें नैनों से अंगारे,

हमें पागल वो कहते हैं,
थे जिनकी आँख के तारे,

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,

घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,

यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Meena Pathak on January 9, 2014 at 12:26pm

क्या  बात है , बहुत सुन्दर , सभी शे'र एक से बढ़ कर एक... बहुत बहुत दाद कुबूल कीजिये अनन्त जी  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2014 at 12:01pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , क्या बात है , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , सभी अशाआर लाजवाब है !! आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,
घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे, -------- बेहद खास शेअर के लिये बेहद बधाइयाँ ॥

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2014 at 11:38am
सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई..................

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