बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था
वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था
साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था
आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था
हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय"
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था
उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?
अजय कुमार शर्मा
प्रथम , मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई आ० अजय जी
इस खूबसूरत रचना की हार्दिक बधाई अजय भाई।
ख़ासियत थी इस मगर // ख़ासियत थी यह ( ये ) मगर
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