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अकेलापन

खिड़की से झांकता

एक उदास चेहरा

और, दूर खड़ा

पत्ता विहीन ,

ढ़ूँढ़ सा, एक पेड़

दोनों ही

अपने अकेलेपन

का दर्द बाँटते

और

घंटों बतियाते

***********

महेश्वरी कनेरी......पूर्णत: मौलिक/अप्रकाशित

Views: 398

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 10:13pm

वाह क्या बिम्ब है ,बहुत सुंदर रचना  // हार्दिक बधाई आपको आदरणीया महेश्वरी जी

Comment by Naveen Singh on January 14, 2014 at 9:09pm

सुंदर अभिव्यक्ति 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 14, 2014 at 8:28am

बहुत बढ़िया रचना, बधाई आदरणीया महेश्वरी जी

Comment by Priyanka singh on January 11, 2014 at 10:29pm

अच्छी रचना के लिए बधाई ....

Comment by ajay sharma on January 11, 2014 at 10:03pm

bahut khoob ............welcome

Comment by Meena Pathak on January 11, 2014 at 5:04pm

अकेला चल चला चल ...............सुन्दर , भावपूर्ण रचना हेतु बधाई आदरणीया 

Comment by coontee mukerji on January 11, 2014 at 4:27pm

अकेलापन बहुत  होता है...सुंदर अभिव्यक्ति  के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on January 11, 2014 at 1:13pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ....

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