फागुन आया अंगना मेरे ,रंगो की हम जोली है ,
नभ में उड़ते रंग गुलाल,आज सखी री होली है |
गाते गीत चौक चौबारे ,मस्तों की ये टोली है,
बाजे ढोल मृदंग मजीरा ,आज सखी री होली है |
धानी धानी चुनरी ओढे,पात बजाते ताली है
एक रंग में रंगे सभी है, आज सखी री होली है |
बिन ठिठोली होली कैसी ,बात सभी ने बोली है ,
भंग का रंग चढा सभी को , आज सखी री होली है |
धरती पर रंगो की नदियाँ ,अम्बर पर रंगोली है ,
आँगन आँगन…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on March 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
भारत के नौजवानों ,माँ भारती पुकारती ,
देश के सपूत तुम ,फर्ज तो निभाइए |
मुश्किल घड़ी है आज,दाव पे लगी है लाज,
सिंग सा दहाड़ कर देश को जगाइए |
वीरता रगों में भर ,शौर्य की कहानी गढ़ ,
प्रचंड चंड रूप तो शत्रु को दिखाइए |
पावन मन गंगा हो ,ले हाथ में तिरंगा हो ,
वन्दे मातरम् गीत ,गाते सब जाइए |
***********
मौलिक और अप्रकाशित रचना
महेश्वरी कनेरी
Added by Maheshwari Kaneri on March 11, 2019 at 5:30pm — 5 Comments
बचपन में हमने अपने दादा दादी और नाना नानी को तो नहीं देखा था ,पर हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग महिला जो अपने परिवार के साथ रहा करती थी । उन्ही से हमें बहुत प्यार मिला करता उनका अकसर हमारे घर में बिना नागा जाना जाना हुआ करता था ।हम उन्हें आमा यानी नानी कहा करते थे ।
वे जब भी हमारे घर आती थी,माँ उन्हें बड़े प्यार से बिठा कर चाय नाश्ता दिया करती थी । वे चाय नाश्ते के चुस्कियो के साथ-साथ अपनी हर छोटी-छोटी बातें ,हर दर्द हर दुख सुख माँ के साथ बाँटा करती थी। माँ भी उनकी हर बात बहुत…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on February 6, 2019 at 4:00pm — 4 Comments
मनहरण धनाक्षरी ..
तन मन प्राण वारूँ वंदन नमन करूँ
गाऊँ यशोगान सदा मातृ भूमि के लिए ..
पावन मातृ भूमि ये, वीरों और शहीदों की
जन्मे राम कृष्ण यहाँ हाथ सुचक्र लिए ,
ये बेमिसाल देश है संस्कृति भी विशेष है
पूजते पत्थर यहाँ आस्था अनंत लिए
शौर्य और त्याग की भक्ति और भाव की
कर्म पथ चले सभी हाथ में ध्वजा लिए .....
.
अप्रकाशित /मौलिक
महेश्वरी कनेरी
Added by Maheshwari Kaneri on January 16, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
क्यों बुझे बुझे से बैठे हो ,
आग नई फिर बुन लो ना |
भटक गए गर राह कहीं तुम ,
राह नई फिर चुन लो ना |
बुझे बुझे से ...........
दुःख सुख तो हैं आते जाते ,
बात सभी हैं ये ही कहते …
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 9, 2018 at 1:30pm — 6 Comments
दो नन्हें फूल,मेरे आँगन के
खिलते महकते,खुशियाँ जीवन के
लड़ते झगड़ते, कभी रुठ भी जाते
पल भर में फिर भूल भी जाते
भोली हँसी कोमल इनका मन है
इनकी बातो में झरते सुमन हैं
दुख का साया, इनके पास न आए
निर्मल धारा ये, बस बहते ही जाए
‘काशवी’ जीवन है तो,’दैविक’ वर है
इनसे ही तो बना ,मेरा घर , घर है
***********
काशवी’-प्रकाशवान
दैविक- ईश्वर का दिया वरदान
…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 5, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
माँ के माथे की बिन्दी
गोल बड़ी सी बिन्दी
माथे पर कान्ति बन
खिलती है बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
सजाती सवाँरती
पहचान बनाती बिन्दी
मान सम्मान
आस्था है बिन्दी
शीतल सहज सरल
कुछ कहती सी बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
थकान मिटा,उर्जा बन
मुस्काती बिन्दी
पावन पवित्र सतित्व की
साक्षी है बिन्दी
परंपरा संस्कारों का
आधार है बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
अपनी हिन्दी भी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on September 12, 2014 at 6:30pm — 5 Comments
अटूट बंधन
कल रात भर आसमान रोता रहा
धरती के कंधे पर सिर रख कर
इतना फूट फूट कर रोया कि
धरती का तन मन
सब भीगने गया
पेड़ पौधे और पत्ते भी
इसके साक्षी बने
उसके दर्द का एक एक कतरा
कभी पेडो़ं से कभी पत्तों में से
टप-टप धरती पर गिरता रहा
धरती भी जतन से उन्हें
समेटती रही,सहेजती रही
और..
दर्द बाँट्ने की कोशिश करती रही
ताकि उसे कुछ राहत मिल जाए
**********************
महेश्वरी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on July 16, 2014 at 6:34pm — 8 Comments
कतरा कतरा बन
जि़न्दगी गिरती रही
हर लम्हों को मैं
यादों में सहेजती रही
अनमना मन मुझसे
क्या मांगे,पता नहीं
पर हर घड़ी धूप सी
मैं ढलती रही
रात, उदासी की चादर
ओढा़ने को तत्पर बहुत
पर मैं
चाँद में अपनी
खुशियाँ तलाशती रही
और चाँदनी सी
खिलखिलाती रही
****************
महेश्वरी कनेरी
अप्रकाशित /मौलिक
Added by Maheshwari Kaneri on June 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
कुछ नई सी बात है
आज सुरमई प्रभात है
उम्मीद नहीं विश्वास है
एक अच्छी शुरुवात है
एक पग आगे बढ़ा
कोटि पग भी बढ़ चले
हाथों से हाथ मिले
दिलों के तार जुड़ते चले
ये भी जज्बात है
एक अच्छी शुरुवात है……….
जैसे छिप गया हो तम
अँधेरे की बौछार से
नवल कोंपलें खिल उठीं
बसंत की पुकार से
प्रकॄति की सौगात है
एक अच्छी शुरुवात है………….
हौसलों की उड़ान भर
उद्धमी मन थकता नहीं
असंभव को संभव…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on June 1, 2014 at 7:49pm — 12 Comments
इंसान का कद
इंसान का कद इतना ऊँचा होगया
कि इंसानियत उसमें अब दिखती नहीं
दिल इतना छोटा होगया कि
भावनाएं उसमें टिक पाती नहीं
जिन्दगी कागज़ के फूलों सी
सजी संवरी दिखती तो है
पर प्रेम प्यार और संवेदनाओ
की कहीं खुशबू नहीं
चकाचौंध भरी दुनिया की इस भीड़ में
इतना आगे निकल गया कि
अपनों के आँसू उसे अब दिखते नहीं
आसमां को छूने की जिद्द में
पैर ज़मी पर टिकते नहीं
सिवा अपने सब छोटे-छोटे
कीड़े मकोड़े से…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 14, 2014 at 5:40pm — 10 Comments
गौरैया
माँ ! आँगन में अपने
अब क्यों नहीं आती गौरैया
शाम सवेरे चीं चीं करती
अब क्यों नहीं गाती गौरैया
फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती
पास जाओ तो उड़ जाती
कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर
अब क्यों नहीं दिखती गौरैया
माँ बतला दो मुझ को
कहाँ खोगई गौरैया ?
विकास के इस दौर में,बेटा !
मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा
काटे पेड़ और जंगल सारे
और छीना पंछी का रैन बसेरा
रुठ गई हम से अब हरियाली
पत्थर का…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 3, 2014 at 7:39pm — 10 Comments
दीवार
आसमां में कोई सरहद नहीं
फिर धरती को क्यों बाँटा है
ये तो हम और तुम हैं ,जिन्होंने
दिलों को भी दीवार से पाटा है
कहीं नफ़्रत की तो कहीं अहं की
आओ इस दीवार को गिरा कर देखें
कि दिल कितना बड़ा होता है..
****************
महेश्वरी कनेरी
मौलिक /अप्रकाशित
Added by Maheshwari Kaneri on April 26, 2014 at 4:45pm — 8 Comments
चुनाव
भरे नहीं थे पिछले घाव
लो फिर आगया चुनाव
मुद्दों की मलहम लेकर
घर-घर बाँट रहे हैं
फिर नए साजिश की
क्या ये सोच रहे हैं ?
धर्म मज़हब की लेकर आड़
करते नित नए खिलवाड़
फिर शह-मात की बारी है
सियासी जंग की तैयारी है
आरोप प्रत्यारोप का
भयंकर गोला बारी है
विकास की उम्मीद लिए
परिवर्तन पर परिवर्तन
लेकिन थमता नहीं यहाँ
कुशासन का ये नर्तन
कहीं मुँह बड़ा हुआ…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on April 17, 2014 at 6:30pm — 8 Comments
कह मुकरियाँ
(ये मेरा पहला प्रयास है )
प्रेम बूँद वो भर भर लाते
तपित हिये की प्यास बुझाते
मन मयूर मेरा उस पर पागल
क्या सखि साजन्, ना सखि बादल
कभी पेड़ों के पीछे से झाँके
कभी खिड़की से झाँक मुस्काए
हँस हँस के डाले है वो फंदा
क्या सखि साजन्, ना सखि चंदा
उम्मीदों की किरण जगाता
स्फूर्ति नई वो भर भर लाता
शुरु होता जीवन उससे मेरा
क्या सखि साजन्, ना सखि…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on March 29, 2014 at 1:00pm — 4 Comments
गीत
.
मन के पन्नों में ,मै.
गीत लिख रही हूँ
जो शब्द तुमनें दिए
वही बुन रही हूँ…..
दिल की धड़कन में
यादें सुबक रही हैं
जो दर्द तुमनें दिए
वही लौटा रही हूँ
मन के पन्नों में ,मै
गीत लिख रही हूँ…..
मौसमों की तरह
तुम बदल गए हो
और कितना सहूँ
मै भी बदल रही हूँ
मन के पन्नों में ,मै.
गीत लिख रही हूँ……
दो कदम ही चले थे
फिर खोगए तुम
राह सूनी सही
मैं अभी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on March 4, 2014 at 2:30pm — 4 Comments
धूप पर बादलो का पहरा लगा हुआ है
उदासी का सबब और भी गहरा हुआ है
तूफ़ा से कह दो थोडा संभल कर चले
वक्त आज यहाँ कुछ बदला हुआ है
दुनिया का कैसा ये बाजार सजा है
जहाँ देखो हर रिश्ता बिका हुआ है
रात भर लिखती रही दर्द की दास्ता
रात का साया और भी गहरा हुआ है
देश की हालात मत पूछो तो अच्छा है
यहाँ हर इंसान इंसान से डरा हुआ है
देख कर खुशनुमा ये मंज़र हैरान हूँ मैं
एक फूल से सारा चमन…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 28, 2014 at 11:30am — 12 Comments
मौन जब मुखरित हो जाता है
मौन जब मुखरित हो
शब्दों में ढल जाता है
मिट जाते भ्रम सभी
मन दर्पण हो जाता है
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
बोझिल मन शान्त हो
सागर सा लहराता है
वेदना सब हवा हो जाती
भोर दस्तक दे जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
धैर्य मन का सघन हो
विश्वास सबल हो जाता है
पतझड़ मन बसंत बन
कोकिल सा किलकाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 21, 2014 at 7:00pm — 8 Comments
खोटा सिक्का
चले थे खुद को भुनवाने
दुनिया के इस बाजार में.
पर खोटा सिक्का मान
ठुकरा दिया ज़माने ने
सोचा ! मुझमें ही कमी थी
या, फिर वक्त का साथ न था
समझ न पाये ,और चुप रह गए
पर चैन न आया
और चल पडे दुनिया को
जानने और पहचानने
देखा ! तो जाना ,
दुनिया कितनी अजीब है
झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी
के पलड़े में हर रोज
इंसान तुल रहा
पलड़ा जितना भारी
इंसान उतना ही…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 17, 2014 at 1:00pm — 9 Comments
अकेलापन
खिड़की से झांकता
एक उदास चेहरा
और, दूर खड़ा
पत्ता विहीन ,
ढ़ूँढ़ सा, एक पेड़
दोनों ही
अपने अकेलेपन
का दर्द बाँटते
और
घंटों बतियाते
***********
महेश्वरी कनेरी......पूर्णत: मौलिक/अप्रकाशित
Added by Maheshwari Kaneri on January 11, 2014 at 12:30pm — 8 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |