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गीत 

.

मन के पन्नों में ,मै.

 गीत लिख रही हूँ

जो शब्द तुमनें दिए

वही बुन रही हूँ…..

दिल की धड़कन में

यादें सुबक रही हैं

जो दर्द तुमनें दिए

वही लौटा रही हूँ

मन के पन्नों में ,मै

 गीत लिख रही हूँ…..

मौसमों की तरह

तुम बदल गए हो

और कितना सहूँ

मै भी बदल रही हूँ

मन के पन्नों में ,मै.

 गीत लिख रही हूँ……

दो कदम ही चले थे

फिर खोगए तुम

राह सूनी सही

मैं अभी चल रही हूँ

मन के पन्नों में ,मै.

 गीत लिख रही हूँ

जो शब्द तुमनें दिए

वही  बुन रही हूँ…..

***********

महेश्वरी कनेरी...मौलिक /अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 11, 2014 at 1:36pm

मन में बसी स्मृतियाँ और अनुभूत मिलन विछोह सुख दुःख आदि ज़ज्बात की गहनता रह रह कर शब्दों में ढलती रही है...

आज फिर वही गान मन में गूंजा और कविता रूप में प्रस्तुत हुआ 

मनोभावों की यथा अभिव्यक्ति के लिए बढ़ाई आ० माहेश्वरी कनेरी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 6, 2014 at 5:42pm

आदरणीया , बहुत सुन्दर गीत रचना की , आपको बधाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 9:56am

बहुत सुंदर, मन को छू जाते भाव. बधाई स्वीकारें आदरणीया महेश्वरी जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 4:42pm

जो दर्द तुमनें दिए

वही लौटा रही हूँ

सादर बधाई 

जो मिला है वही दे रहे हैं 

न बुरा किया था न कर रहे हैं 

कृपया ध्यान दे...

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