For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल (धूप पर बादलो का पहरा लगा हुआ है)

धूप पर बादलो का पहरा लगा हुआ है

उदासी का सबब और भी गहरा हुआ है

 

तूफ़ा से कह दो थोडा संभल कर चले

वक्त आज यहाँ कुछ बदला हुआ है

 

दुनिया का कैसा ये बाजार सजा है

जहाँ देखो हर रिश्ता बिका हुआ है

 

रात भर लिखती रही दर्द की दास्ता

रात का साया और भी गहरा हुआ है

 

देश की हालात मत पूछो तो अच्छा है

यहाँ हर इंसान इंसान से डरा हुआ है

 

देख कर खुशनुमा ये मंज़र हैरान हूँ मैं

एक फूल से सारा चमन महका हुआ है

        *****************

           महेश्वरी कनेरी  

       मौलिक और अप्रकाशित

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Saarthi Baidyanath on February 1, 2014 at 10:42am

बहुत बढ़िया प्रयास ! बधाई स्वीकार करें !

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 9:06pm

बहुत सुंदर.

Comment by बृजेश नीरज on January 30, 2014 at 8:02pm

आदरणीया बहुत अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

इस लिंक पर ग़ज़ल की बातें समूह में बहुत उपयोगी जानकारियां हैं. उनका लाभ उठाएँ!

http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn

Comment by Shyam Narain Verma on January 30, 2014 at 11:30am
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by vandana on January 30, 2014 at 7:15am

आदरणीया बहुत सुन्दर भाव हैं 

इसी पेज पर नीचे महत्वपूर्ण लिंक्स हैं ग़ज़ल की बारीकियां सीखने में बहुत मददगार साबित होंगी 

Comment by Maheshwari Kaneri on January 29, 2014 at 8:00pm

 में यह मेरा पहला प्रयास है इस्के नियमॊ के बारे में कुछ नही जानती..'.बह्र मात्राए' क्या  होती हैं मुझे मालूम नही...आप सभी का मार्ग दर्शन चाहती हूँ..आभार..आप सभी का

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 29, 2014 at 4:56pm

इस शानदार ग़ज़ल पर मेरी तरफ से तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर 

Comment by Saarthi Baidyanath on January 29, 2014 at 10:42am

बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीया आपने ! ...कुछ गुरुजनों की बातों पर जरुर अमल करें, और बढ़िया ग़ज़ल होगी ! नमन सहित  

Comment by annapurna bajpai on January 28, 2014 at 11:56pm

बहुत बढ़िया गजल आपको बहुत बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2014 at 6:45pm

आदरणीया , सुन्दर भावों और विचारों से सजी आपकी रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥ ग़ज़ल के लिहाज़ से बह्र मे कुछ कमियाँ हैं ॥ सुन्दर प्रयास के लिये आपको पुनः बधाई ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service