मौन जब मुखरित हो जाता है
मौन जब मुखरित हो
शब्दों में ढल जाता है
मिट जाते भ्रम सभी
मन दर्पण हो जाता है
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
बोझिल मन शान्त हो
सागर सा लहराता है
वेदना सब हवा हो जाती
भोर दस्तक दे जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
धैर्य मन का सघन हो
विश्वास सबल हो जाता है
पतझड़ मन बसंत बन
कोकिल सा किलकाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
सुखद अहसासों से भर
ह्रदय पुलकित होजाता है
विचारों में पंख लग जाते
नया इतिहास रच जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
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महेश्वरी कनेरी..मौलिक /अप्रकाशित
Comment
इस सधे हुए प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया
शुभेच्छाएँ
मौन की ओढनी ओढे मन की वाचालता जब प्राचीरें तोड़ मुखरित हो उठे तो अन्तः में जमी संवेदनाएं पिघल पिघल बहने लगती हैं और मन शांत हो ही जाता है.... इन भावों को सहजता से पिरोहा है आपने अपनी कविता में
बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर आ० माहेश्वरी कनेरी जी
आदरणीया गीत के प्रवाह में बहुत सुधार किया है आपने पुनः पढ़ने पर अधिक प्रसन्नता हुई पुनः बधाई आपको
आदरणीया महेश्वरी जी , बहुत सुन्दर गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ॥
वाह बहुत खूबसूरत गीत है आदरणीया महेश्वरी जी बहुत बहुत बधाई इस गीत के लिये
आदरणीया बहुत अच्छा प्रयास है अच्छी पंक्तियाँ बनी हैं प्रवाह में कमी है प्रयासरत रहें. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
मौन को एक मुखर अभिव्यक्ति देने के लिए हार्दिक वधाई सीकर करें l
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