दीवार
आसमां में कोई सरहद नहीं
फिर धरती को क्यों बाँटा है
ये तो हम और तुम हैं ,जिन्होंने
दिलों को भी दीवार से पाटा है
कहीं नफ़्रत की तो कहीं अहं की
आओ इस दीवार को गिरा कर देखें
कि दिल कितना बड़ा होता है..
****************
महेश्वरी कनेरी
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
अति सुन्दर भाव समेटे सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया
बहुत सुंदर....आपको हार्दिक बधाई.
सुन्दर भाव , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई , आदरणीया !!
एक सार्थक अभिव्यक्ति, बहुत ही सुंदर आदरणीया बधाई
कम शब्दों में बहुत कुछ कहकर, एक सार्थक सन्देश देती रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया माहेश्वरी जी
बहुत खूब आदरणीया महेश्वरी जी अच्छी रचना है बहुत बहुत बधाई आपको
//
आसमां में कोई सरहद नहीं
फिर धरती को क्यों बाँटा है//........... यह बहुत ही खूबसूरत खयाल है।
थोड़े से शब्दों में आपने कितना-कुछ कह लिया, और मार्ग-दर्शन भी किया। हार्दिक बधाई।
एक छोटी-सी बात ... नफ़रत और अहं.. इन दो दीवारों को सम्बोधित किया है तो शायद
"आओ इन दीवारों को गिरा कर देंखें" कहना अच्छा लगेगा। पर आप लेखक हैं, आपका
कोई विशिष्ट कारण हो सकता है इस पंक्ति को एक वचन में रखने का। आशा है मेरे सुझाव
को अनयथा न लेंगे।
पुन: बधाई इस अच्छी रचना के लिए।
badhiya ...
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