ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा
आंसुओं से ज़िंदगीभर आचमन करना पड़ा....
मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं
क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा .....
ऐसे ही पायी नहीं थी देश ने स्वतन्त्रता
इस को पाने के लिए क्या क्या जतन करना पड़ा ...
जाने मुंसिफ़ की भला थी कौन सी मजबूरियां
फैसला हक़ में मेरे जो दफ़अतन करना पड़ा....
किस तरह कृतत्व से व्यक्तित्व है ,आखिर जुड़ा
इस विषय पर देर तक चिंतन गहन करना पड़ा ....
मोह,माया,वासना की कामना कोई न थी
इश्क़ हमको आपसे बस आदतन करना पड़ा ...
काव्य रस का पान कर ,आनंद लेने के लिए
मन लगा कर पाठकों को अध्ययन करना पड़ा ...
मौलिक व अप्रकाशित ....
Comment
वाह उम्दा रचना हेतु बधाई
सादर
मोह,माया,वासना की कामना कोई न थी
इश्क़ हमको आपसे बस आदतन करना पड़ा.......बहुत खूब.
आदरणीय अजय भाई,
सुंदर गज़ल , हिंदी शब्दों का सुंदर प्रयोग़ , हार्दिक बधाई ।
आदरणीय अजय भाई , लाजवाब हिन्दी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ सभी शेर सुन्दर हुये हैं ॥
किस तरह कृतत्व से व्यक्तित्व है ,आखिर जुड़ा - ---- इस मिसरे की तकतीअ फिर से करके देख लीजियेगा ,शायद गलत हो ॥
काव्य रस का पान कर ,आनंद लेने के लिए
मन लगा कर पाठकों को अध्ययन करना पड़ा ...
..............वाह वाह ... क्या बात कही आप ने ,, बहुत खूब
काव्य रस का पान कर ,आनंद लेने के लिए
मन लगा कर पाठकों को अध्ययन करना पड़ा ......वाह वाह शानदार जिंदाबाद अजय जी बधाई !! क्या खूब ग़ज़ल हुई है !
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