छंद पर मेरा प्रथम प्रयास
छलक छलक जाती अँखियाँ हैं प्रभुश्याम
आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ ।
ब्रज के कन्हाइ का मुझे भरोसा मिल गया ,
खुशी न समानी मन मानी हुई जाती हूँ ।
भक्ति रस मे ही डूबी श्याम मै पोर पोर
भावना मे डूबी पानी पानी हुई जाती हूँ ।
सांवरे का जादू ऐसा चढ़ा तन मन पर ,
राधिका सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
प्रस्तुति के भाव वस्तुतः बहुत अच्छे हुए हैं. कवित्त में गेयता आवश्यक अवयव है जो शब्द संयोजन पर निर्भर करती है.
इस प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदणीया अन्नपूर्णा जी.
आ0 प्राची जी आपकी टिप्पणी का इंतजार कर रही थी आपका अनुमोदन मिला आपका हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 सरिता जी आपका धन्यवाद ।
आ0 वंदना जी आपका हार्दिक आभार ।
प्रिय वंदना तिवारी बहुत आभार आपका ।
घनाक्षरी छन्द पर बहुत सुन्दर प्रयास किया है आ० अन्नपूर्णा जी
कन्हाई प्रेम भक्ति को समर्पित बहुत सुन्दर भाव...हार्दिक बधाई
भक्तिभाव से ओतप्रोत सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई अन्नपूर्णा जी
वाह आदरणीया बहुत सुन्दर रचना
आदरणीया दीदी भक्ति रस से ओत-प्रोत यह सुंदर रचना अच्छी लगी।
कान्हा जी की भक्ति सदैव आपके हृदय में बनी रहे।
शुभ शुभ
आदरणीय नादिर खान जी , आ0 श्याम नारायण जी , प्रिय अरुण , आ0 आशीष जी , आ0 शिजू जी , आ0 भण्डारी जी , आप सबका हार्दिक आभार ।
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