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छलक छलक जाती है अँखियाँ -(घनाक्षरी छंद ) !!

छंद पर मेरा प्रथम प्रयास 

छलक छलक जाती अँखियाँ हैं प्रभुश्याम 

आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ ।

ब्रज के कन्हाइ का मुझे भरोसा मिल गया ,

खुशी न समानी मन  मानी हुई जाती हूँ ।

भक्ति रस मे ही डूबी श्याम मै पोर पोर 

भावना मे डूबी पानी पानी हुई जाती हूँ ।

सांवरे का जादू ऐसा चढ़ा तन मन पर ,

राधिका  सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ । 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2014 at 4:56pm

प्रस्तुति के भाव वस्तुतः बहुत अच्छे हुए हैं.  कवित्त में गेयता आवश्यक अवयव है जो शब्द संयोजन पर निर्भर करती है.

इस प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदणीया अन्नपूर्णा जी.

Comment by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:26am

आ0 प्राची जी आपकी टिप्पणी का इंतजार कर रही थी आपका अनुमोदन  मिला आपका हार्दिक धन्यवाद । 

Comment by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:25am

आ0 सरिता जी आपका धन्यवाद । 

Comment by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:25am

आ0 वंदना जी आपका हार्दिक आभार ।

Comment by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:24am

प्रिय वंदना तिवारी बहुत आभार आपका । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2014 at 12:09pm

घनाक्षरी छन्द पर बहुत सुन्दर प्रयास किया है आ० अन्नपूर्णा जी 

कन्हाई प्रेम भक्ति को समर्पित बहुत सुन्दर भाव...हार्दिक बधाई 

Comment by Sarita Bhatia on January 23, 2014 at 6:30pm

भक्तिभाव से ओतप्रोत सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई अन्नपूर्णा जी 

Comment by vandana on January 23, 2014 at 7:25am

वाह आदरणीया बहुत सुन्दर रचना 

Comment by Vindu Babu on January 23, 2014 at 4:41am

आदरणीया दीदी भक्ति रस से ओत-प्रोत यह सुंदर रचना अच्छी लगी।

कान्हा जी की भक्ति सदैव आपके हृदय में बनी रहे।

शुभ शुभ

Comment by annapurna bajpai on January 22, 2014 at 11:27pm

आदरणीय नादिर खान जी , आ0 श्याम नारायण जी , प्रिय अरुण , आ0 आशीष जी , आ0 शिजू जी , आ0 भण्डारी जी , आप सबका हार्दिक आभार । 

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