1222 1222 1222 1222
हमारी प्यास ले जाओ, जरा सूरज घटाओं तक
समय इतना नहीं बाकी, खबर भेजें हवाओं तक
तुम्हारी कोशिशें थी नित, यहाँ केवल दवाओं तक
हमारा भाग भा खोटा, न जा पाया दुआओं तक
कहाँ से भेजता रब भी, मदद को रहमतें अपनी
पहुचनें ही न पायी जब, सदा मेरी खलाओं तक
कहो तुम चाँद से इतना, सितारों रोशनी मकसद
रहा मत कर सदा इतना, सिमटकर तूँ कलाओं तक
सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के
हमारी हद सहन तक ही, तुम्हारी हद सजाओं तक
खड़ा है वट बिजन में अब, सताता है अकेलापन
पठाओ ये खबर झटपट, खफा बैठी लताओं तक
‘मुसाफिर’ हो सरल जाता, सफर सच में मुहब्बत का
बढ़ा लेते अगर तुम भी , कदम कुछ इन वफाओं तक
मौलिक और अप्रकाशित
23.01.2014
Comment
वाह वाह जिंदाबाद गजल
सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के
हमारी हद सहन तक ही, तुम्हारी हद सजाओं तक
हार्दिक बधाई
सुन्दर गज़ल हुई है सर जी ! ये अश'आर खास पसंद आए -
सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के
हमारी हद सहन तक ही, तुम्हारी हद सजाओं तक
खड़ा है वट विजन में अब, सताता है अकेलापन
पठाओ ये खबर झटपट, खफा बैठी लताओं तक ............ बहुत ही कोमल शे'र ! वाह !
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