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मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

तुम कोमल कमसिन लता नवीन और विजन में खड़ा विटप मैं ।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

वात झूमती चलती जब भी, मौन मेरा भी वाणी पाता ।

लेकिन इसका लाभ कहो क्या, कौन विजन में गुनने आता ।

भाग में मेरे लिखा दिवाकर, तरस तनिक जो कभी न खाता ।

तूफानों से हुआ जो नाता, गिरने का भय डँसता जाता ।


निभर्य स्नेहिल जीवन जी लूँगा, मुझसे यदि नाता जोड़ो ।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

मेरे सूने जीवन की तो, सब मनुहारें तुमने ठुकराई ।

और धरा के हित में तूने, बांह सहज अपनी  फैलायी ।
सावन जैसे हरित रूप ने, मति तुम्हारी शायद भरमायी ।
किन्तु सहारा पाये बिन मेरा, प्राप्य नहीं तुमको ऊँचाई ।


इसलिए ओ! लता नवेली, यह मिथ्या मद तुम भी छोड़ो ।।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

सावन आये, फागुन बीते, हरियाया न कुछ जीवन में ।
धरे न दो पग यहाँ किसी ने, रहा जनम से सदा विजन में ।

निष्ठुरपन जो झलका तन में, पंछी तक न झाँका मन में ।

इसीलिए कुछ दर्प उगा है, मेरे प्यासे स्नेहिल मन में ।

लेकिन तुम बन कृषक बेटी, मेरे मन भावों को गोड़ो ।

चाहों तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

नारी का आभूषण लज्जा, समझ न पाया मैं अलबेला ।

वैसे भी यह कौन बताता, रहा विजन में सदा अकेला ।

यूँ तो रहा वसंती मेला, पर एकाकी खाया खेला ।

आकर तुम जो साथ रहो तो, मुस्का जाये जीवन बेला ।

मेरे सूने जीवन के हित, प्रेम की चूनर आ तुम ओढ़ो ।

चाहो तो तुम अलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by vandana on February 2, 2014 at 7:47am

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:21am

आदरणीय भाई सौरभ जी , गीत कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपकी सलाह जायज है , जरूर गौर करूँगा . इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहिये . तभी खुद को निखार पाउँगा . आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:19am

आदरणीय भाई विजय  जी , गीत कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:18am

आदरणीय भाई अरुण जी , गीत कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपकी सलाह जायज है , जरूर गौर करूँगा .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 2, 2014 at 3:55am

आपके गीतों का व्यावहारिक पक् तो मुगध कर गया, भाई लक्ष्मणजी. हृदय से बधाई स्वीकारें.

लयबद्धता यों कुछ विशेष शाब्दिक-विन्यास मांगती है, आप उस ओर भी ध्यान देंगे, ऐसी आशा है. इस मनभावन गीत के लिए पुनः हार्दिक बधाई

शुभ-शुभ

Comment by विजय मिश्र on January 30, 2014 at 1:00pm
भावप्रधान सुरम्य सुंदर रचना , बधाई लक्ष्मणजी |
Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2014 at 10:38am

आदरणीय लक्ष्मण जी बेहद सुन्दर गीत रचा है आपने भाव मन को बरबस ही आकर्षित करता है शब्द संयोजन बहुत ही अच्छा है किन्तु प्रवाह की कमी के कारण आनंद नहीं आया. खैर गीत बहुत पसंद आया इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:18am

आदरणीय भाई मीना जी गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:18am

आदरणीय भाई बृजेश जी गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:16am

आदरणीय भाई विजय निकोर जी गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

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