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बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।
बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।

बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।
हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।

दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।
होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।

रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।
दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।

आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।

व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर बात ।
प्रीतम संबंधी सखा, कागज़ कलम दवात ।६।

अधरों की रूठी हँसी, हिस्से आई मात ।
सावन देती हैं हरा, नैनों की बरसात ।७।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 10:44am

इससे सुन्दर और क्या, होगी कोई बात ।

दोहे पढके आपके, भीग गए जज्बात ।।

हृदयतल से हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी, स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 10:37am

हार्दिक आभार आदरणीया महेश्वरी जी स्नेह बनाये रखिये


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 23, 2014 at 8:57pm

आदरणीय अरुण भाई , बहुत सुन्दर दोहा वली की रचना की है , सभी दोहे लाजवाब हैं ॥ आपको बधाइयाँ ॥ तुम पश्चात, मुझे भी कुछ खटक रहा है , जरा सोच के देखियेगा ॥

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 23, 2014 at 7:36pm

 वाह  बहुत सुंदर  , हार्दिक बधाई प्रिय अरुण जी ।

पल पल तुम पश्चात  //  तुम शब्द का  तुम्हारे की तरह उपयोग हुआ  है जो कि गलत है, बाकी गुणीजन ही बतला सकते हैं॥

अगर मैं सही हूँ तो उसे // पल पल  काली रात ...या एसा ही कुछ  कर लीजिये......  

..... सादर 

Comment by Sarita Bhatia on January 23, 2014 at 3:49pm

प्रिय अरुण हर दोहा दर्द में डूबा हुआ 

दोहे पढके हैं अरुण,भीग गए जज्बात  

दर्द बरसा रही बहुत,दोहों की बरसात /

Comment by Maheshwari Kaneri on January 23, 2014 at 3:39pm
अरुण शर्मा जी नमस्कार आप के.दोहे बहुत सुन्दर है...मेरी पोस्ट पर आप आए आभार उत्साह वर्धन के लिए भी धन्यवाद....आप ने लिखाथा कि प्रवाह की कमी है.। मैने दुबारा प्रयास किया है..कृपया पधार कर मार्ग दर्शन करें मुझे अच्छा लगेगा । धन्यवाद...

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