तुम कोमल कमसिन लता नवीन और विजन में खड़ा विटप मैं ।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
वात झूमती चलती जब भी, मौन मेरा भी वाणी पाता ।
लेकिन इसका लाभ कहो क्या, कौन विजन में गुनने आता ।
भाग में मेरे लिखा दिवाकर, तरस तनिक जो कभी न खाता ।
तूफानों से हुआ जो नाता, गिरने का भय डँसता जाता ।
निभर्य स्नेहिल जीवन जी लूँगा, मुझसे यदि नाता जोड़ो ।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
मेरे सूने जीवन की तो, सब मनुहारें तुमने ठुकराई ।
और धरा के हित में तूने, बांह सहज अपनी फैलायी ।
सावन जैसे हरित रूप ने, मति तुम्हारी शायद भरमायी ।
किन्तु सहारा पाये बिन मेरा, प्राप्य नहीं तुमको ऊँचाई ।
इसलिए ओ! लता नवेली, यह मिथ्या मद तुम भी छोड़ो ।।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
सावन आये, फागुन बीते, हरियाया न कुछ जीवन में ।
धरे न दो पग यहाँ किसी ने, रहा जनम से सदा विजन में ।
निष्ठुरपन जो झलका तन में, पंछी तक न झाँका मन में ।
इसीलिए कुछ दर्प उगा है, मेरे प्यासे स्नेहिल मन में ।
लेकिन तुम बन कृषक बेटी, मेरे मन भावों को गोड़ो ।
चाहों तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
नारी का आभूषण लज्जा, समझ न पाया मैं अलबेला ।
वैसे भी यह कौन बताता, रहा विजन में सदा अकेला ।
यूँ तो रहा वसंती मेला, पर एकाकी खाया खेला ।
आकर तुम जो साथ रहो तो, मुस्का जाये जीवन बेला ।
मेरे सूने जीवन के हित, प्रेम की चूनर आ तुम ओढ़ो ।
चाहो तो तुम अलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर .................बधाई आप को
बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
गीत में भाव अच्छे लगे। बधाई।
आदरणीय भाई गिरिराज जी गीत कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीया अनुपमा जी ,
गीत अच्छा लगा हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय भाई श्याम नारायण जी उत्साहवर्धन के लिए आभार .
आदरनीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर गीत रचना के लिये आपको बधाई ॥
बहुत सुंदर गीत , बहुत बधाई आपको ।
इस खूबसूरत रचना की हार्दिक बधाई .... |
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