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सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2212    1212    1212     22 

तारीक़ी फिर लगी मुझे बढ़ी चढ़ी क्यों है   

सूरत में सुब्ह की बसी ये बरहमी क्यों है

क्यूँ रात शर्मशार सी है चुप खड़ी दिखती  

ये सुब्ह बेज़ुबान सी , डरी हुई क्यों है

ख़ंज़र की दिल-ज़िगर से, दुश्मनी तो है जाइज़

अचरज में पड़ गया हूँ मैं, ये हमदमी क्यों है

जब तक वो पास थी मेरे मै खुश नहीं था, फिर

अब ग़ैर हो चुकी है तो लगी कमी क्यों है

मै दिल-जिगर हूँ, प्यार हूँ ,मै हमसफर हूँ , तो

मुझ पर पड़ी निगाह उनकी सरसरी क्यों है

सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम

दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है

 

***********************************

 

 मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 29, 2014 at 2:20pm

आदरणीय नीरज प्रेम भाई , गज़ल की सरहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 29, 2014 at 2:19pm

आदरणीय बृजेश भाई , गज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ॥

Comment by Neeraj Nishchal on January 29, 2014 at 1:54pm

जब तक वो पास थी मेरे मै खुश नहीं था, फिर

अब ग़ैर हो चुकी है तो लगी कमी क्यों है

बहुत ही सार्थक बात बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत बहुत भधाई आदरणीय भण्डारी जी

Comment by बृजेश नीरज on January 29, 2014 at 12:13pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 29, 2014 at 12:09pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 29, 2014 at 12:08pm

आदरणीय बड़े भाई , विजय जी , ग़ज़ल को आपका आशीर्वाद मिलना मेरे लिये खुशी का कारण है ॥ सराहना के लिये आपका आभार ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 29, 2014 at 10:44am

ख़ंज़र की दिल-ज़िगर से, दुश्मनी तो है जाइज़

अचरज में पड़ गया हूँ मैं, ये हमदमी क्यों है

बेहद खुबसूरत गजल आदरणीय गिरिराज जी, दिली दाद कुबूल कीजिये

Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 2:49am

गज़ल अच्छी लगी, खयाल अच्छे हैं। बधाई मेरे भाई।


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2014 at 6:04pm

आदरनीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2014 at 6:03pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

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