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वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से
बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से
नज़र में मुस्कुराहट, होठ चुप हैं
न जाने कह रहे हैं क्या, हँसी से
मै अब बेरोक बहता हूँ, हवा हो
ये रिश्ता खूब है आवारगी से
वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है
नहीं डरता, किसी भी तीरगी से
वो जिनकी फ़िक्र मे आज़ार है कुछ
वही डरते रहे बे पर्दगी से
चलो हम गुनगुनायें आज, ग़म को
ज़रा रिश्ता तो जोड़ें आशिकी से
ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी
तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से
बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है
कोई कितना कहेगा शाइरी से ?
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। दिली दाद कुबूल करें।
आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर इतनी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज भंडारी जी
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से................बहुत सादगी से इतनी सुन्दर बात कह दी .वाह
वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है
नहीं डरता, किसी भी तीरगी से................बहुत खूब
ये दो शेर ख़ास पसंद आये
बहुत बहुत बधाई
आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से
बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से
आदरणीय गिरिराज जी, बड़ी सादगी और संगीदगी से अपने एक से बढ़कर एक शेर कहे ।.आपको.ढेरों बढ़ाइयाँ इस उत्कृष्ट रचना के लिए .....
आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल को आपकी स्वीकृति मिली परीक्षा पास होने जैसी खुशी मिली , ऐसे ही स्नेह और कृपा बनाये रखें , मार्गदर्शन देते रहें ॥ सहारना के लिये हार्दिक आभार ॥
आदरनीय अनिल कुमार भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदर्णीय नीरज प्रेम भाई , आपने न बोल के बहुत कुछ कहा है , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आपकी ग़ज़लों में अब जब तब आतशपारा (चिनगारी) सा कौंधता है. यह एक अच्छी बात है. एक अच्छी ग़ज़ल केलिए दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय
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