For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो तन को ढांकते हैं रोशनी से , ( गज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  122

 

वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से

बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से

नज़र में मुस्कुराहट, होठ चुप हैं

न जाने कह रहे हैं क्या, हँसी से

मै अब बेरोक बहता हूँ, हवा हो

ये रिश्ता खूब है आवारगी से

वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है

नहीं डरता, किसी भी तीरगी से

वो जिनकी फ़िक्र मे आज़ार है कुछ

वही डरते रहे बे पर्दगी से

चलो हम गुनगुनायें आज, ग़म को

ज़रा रिश्ता तो जोड़ें आशिकी से

ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी

तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से

बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है

कोई कितना कहेगा शाइरी से ?

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 10:21pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 8:10pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। दिली दाद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2014 at 8:01pm

आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर इतनी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 11:04am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज भंडारी जी 

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से................बहुत सादगी से इतनी सुन्दर बात कह दी .वाह 

वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है

नहीं डरता, किसी भी तीरगी से................बहुत खूब 

ये दो शेर ख़ास पसंद आये 

बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 2:31pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by नादिर ख़ान on February 6, 2014 at 11:22am

वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से

बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से

 

आदरणीय गिरिराज जी, बड़ी सादगी और संगीदगी से अपने एक से बढ़कर एक शेर कहे ।.आपको.ढेरों बढ़ाइयाँ  इस उत्कृष्ट रचना के लिए .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 7:45am

आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल को आपकी स्वीकृति मिली परीक्षा पास होने जैसी खुशी मिली , ऐसे ही स्नेह और कृपा बनाये रखें , मार्गदर्शन देते रहें ॥ सहारना के लिये हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 7:40am

आदरनीय अनिल कुमार भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 7:40am

आदर्णीय नीरज प्रेम भाई , आपने  न बोल के बहुत कुछ कहा है , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 12:42am

आपकी ग़ज़लों में अब जब तब आतशपारा (चिनगारी) सा कौंधता है. यह एक अच्छी बात है. एक अच्छी ग़ज़ल केलिए दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service