2212 1212 1212 22
तारीक़ी फिर लगी मुझे बढ़ी चढ़ी क्यों है
सूरत में सुब्ह की बसी ये बरहमी क्यों है
क्यूँ रात शर्मशार सी है चुप खड़ी दिखती
ये सुब्ह बेज़ुबान सी , डरी हुई क्यों है
ख़ंज़र की दिल-ज़िगर से, दुश्मनी तो है जाइज़
अचरज में पड़ गया हूँ मैं, ये हमदमी क्यों है
जब तक वो पास थी मेरे मै खुश नहीं था, फिर
अब ग़ैर हो चुकी है तो लगी कमी क्यों है
मै दिल-जिगर हूँ, प्यार हूँ ,मै हमसफर हूँ , तो
मुझ पर पड़ी निगाह उनकी सरसरी क्यों है
सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम
दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ । गुनहगार को शर्मशार कर देता हूँ , गलती बताने के लिये आपका आभार ॥
मै दिल-जिगर हूँ, प्यार हूँ ,मै हमसफर हूँ , तो
मुझ पर पड़ी निगाह उनकी सरसरी क्यों है
सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम
दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है
इन दो अश’आर पर विशेष बधाई..
गुनहगार को आपने जैसे बाँधा है, उससे मैं संयत नहीं हो पारहा हूँ.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय अरुण अनंत भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥ गुनहगार के लिये गुननगार हूँ , उसकी जगह शर्मशार करके पढ्ने की कृपा करें , संशोधन के लिये बाद में डाल दूंगा ॥
आदरणीया वन्दना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
वाह क्या कहने आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन अशआर हुए है शानदार ग़ज़ल कही है आपने ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. मैं स्वयं भी आदरणीया राजेश माँ जी से पूर्णतया सहमत हूँ गुनहगार को २१२१ में नहीं बांधा जा सकता इसका वज्न १२२१ ही होना चाहिए.
सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम
दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है
शानदार ग़ज़ल आदरणीय गिरिराज सर
आदरणीया राजेश जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीया मुझे नही लग रहा है आप ग़लत है , गुनहगार को बांधने मै ही गुनहगर लग रहा हूँ , फिर भी गुणीजनों की प्रतीक्षा कर लेता हूँ ॥ सराहना और सलाह के लिये आपका पुनः शुक्रिया ॥
आदरणीया मीना जी , आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ने हमेशा की तरह मेरी हिम्मत बढ़ाई है , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
वाह वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल सभी अशआर प्रभावशील हैं बहुत सी दाद कबूलिये आ० एक संशय ---
क्यूँ रात गुनहगार सी है चुप खड़ी दिखती ----इस मिसरे में गुनहगार को आपने २१२१ में बांधा है जब की मेरे ख्याल से १२२१ में होना चाहिए ---हो सकता है मैं ग़लत हूँ ---पर यहाँ अटक रही हूँ अंतिम शेर के लिए एक ही शब्द ---वल्लाह
क्या बात है आ० गिरिराज जी .. गज़ब ... बहुत बहुत सुन्दर गज़ल .. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें | सादर
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