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पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ
ये लगे है कि मिट जाये अब दूरियाँ
चाँदनी भी है कंदील भी हाथ में
फिर भी क्यूँ रौशनी से अजब दूरियाँ
याद आती रहे आपको मेरी तो
मैं कहूँ है बहुत मुस्तहब दूरियाँ
मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई
दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ
मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत अफ़्सुर्दगी = उदासी
इक नये दर्द से रोज़ो-शब दूरियाँ
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय सौरभ सर मेरी रचना पर अपने बहुमूल्य विचार देने के लिये आपका आभारी हूँ,
प्रस्तुत ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई शिज्जू भाईजी..
भाई बृजेश के पूछे पर आपने जो कहा है वो विन्दुवत नहीं है. लेकिन आपकी बातें मनन के योग्य हैं.
वैसे काव्य विधा कोई हो, वह कहीं से उत्पन्न हुई हो, वह भाव-संप्रेषण के लिए साधन मात्र होती है. जैसे कि भाषा भी होती है. लेकिन साधन और भाषा को आइडेण्टिकल मानना भूल होगी. हम जिस भाषा में बातें करें, और हमें सहूलियत होती है वही विधा के माध्यम से साझा हो. लिखने वाला जिन शब्दों में सहजता और सरलता महसूस करता है वही प्रयोग करे. यदि आपकी भाषा उर्दू सम्मत भाषा है तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन सिर्फ़ ग़ज़ल के लिए फ़ारसी (उर्दू) शब्दों का प्रयोग करना उचित नहीं है.
इतना मैं मात्र इस लिए कह गया कि चर्चा हुई है.
शुभ-शुभ
आदरणीया कुन्ती जी आपका आभार
सुंदर गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई...शिज्जू जी.
आदरणीय बृजेशजी आपका आभार.
//उर्दू ग़ज़ल और हिंदी ग़ज़ल में अंतर क्या है- क्या सिर्फ लिपि का? // आपने वीनस जी का ये पोस्ट पढ़ा ही होगा //ग़ज़ल की लोकप्रियता तथा भारतीय परिवेश में ग़ज़ल और भाषा का इतिहास// इसके अनुसार सबसे पहले ग़ज़ल फारसी में कही गई मगर ग़ज़ल की लोकप्रियता के शिखर पर थी तब इसे उर्दू में कहा जाता था जिसमें अरबी और फारसी के शब्द भी होते थे मौजूदा दौर के शुअरा भी उर्दू के जानकार हैं, लेकिन पाठकों का बहुत बड़ा वर्ग उर्दू लिपि नही पढ़ सकता इसके अलावा हिन्दी के रचनाकार भी ग़ज़ल कहने लगे हैं l चूँकि ग़ज़ल को पहचान व लोकप्रियता तब मिली थी जब इसे उर्दू में कहा जाता था इसलिये अभी तक इसपे उर्दू का असर है। मौजूदा दौर के शायर बशीर बद्र साहब ने न सिर्फ उर्दू बल्कि इंग्लिश के शब्दों का भी अपनी रचना में समावेश किया है। यथा-
//कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया -नया न कहा हुआ न सुना हुआ//
उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग पहले की तुलना मे अभी कम हो रहा है, अभी तक मैंने जितना सीखा है। उसके अनुसार ग़ज़ल विधा में शिल्प की बंदिशें सबसे ज़्यादा है। ग़ज़ल में काफिया बंदी करते समय बहुत ध्यान रखना पड़ता है, बह्र का ध्यान रखना पड़ता तदनुसार शब्दों का चयन करना पड़ता है क्यूँकि ये सब ग़ज़ल के अनिवार्य तत्व हैं। और ग़ज़ल की रवानी के लिये कई बार ऐसे कठिन शब्द लेने पड़ जाते हैं, सिर्फ उर्दू ही नही कई बार ऐसे हिन्दी के शब्द आ जाते हैं जो आमतौर पे प्रचलन में नही है, उस समय भी कठिनाई होती है, यदि हिन्दी ग़ज़ल में उर्दू के शब्दों का सही प्रयोग हुआ है तो इसमें ग़लत कुछ नही है।
उदाहरण के लिये मेरी रचना का एक मिसरा
//मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत// इसमें शब्द अफ़्सुर्दगी की जगह उदासी ले लेता हूँ, तब मैं कितने तरीके से लिख सकता हूँ
//यूँ मेरी इस उदासी को बढ़ाये बहुत
इक नये दर्द से रोज़ो-शब दूरियाँ// यहाँ मैं यूँ को रखूँ चाहे न रखूँ कोई फर्क नही पड़ेगा। अब यूँ की जगह
क्यूँ लिख के देखूँ तो
//क्यूँ मेरी इस उदासी को बढ़ाये बहुत
इक नये दर्द से रोज़ो-शब दूरियाँ // क्यूँ के साथ बहुत शब्द जम नही रहा बहरहाल बहुत कायम रखते हैं
//मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत
इक नये दर्द से रोज़ो-शब दूरियाँ//
पहले शेर में प्रश्न किया जा रहा है दूसरे में बताया जा रहा है
अब यहाँ मेरा प्रश्न करना ज़्यादा असर डाल रहा है या बताना अब आप बतायें l इसके बाद मैं आगे की बात करूँगा
ग़ज़ल की सराहना के लिये आप सभी का शुक्रगुज़ार हूँ
मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई
दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ.......लाजवाब ग़ज़ल हुई है जनाब ..! उम्दा अशआर दिल को छुते हुए !
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
इस ग़ज़ल से हटकर एक बात यहाँ रखना चाहता हूँ, जिस पर चर्चा होनी चाहिए कि उर्दू ग़ज़ल और हिंदी ग़ज़ल में अंतर क्या है- क्या सिर्फ लिपि का? हिंदी ग़ज़ल में जिस तरह के कठिन उर्दू, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग होने लगा है, उससे तो यही लगता है!
सादर!
पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ
ये लगे है कि मिट जाये अब दूरियाँ............इक उम्मीद
मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई
दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ..............न जाने क्यूँ ?
क्या बात..बहुत खुबसूरत गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय शिज्जू जी
मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत
इक नये दर्द से रोज़ो-शब दूरियाँ
याद आती रहे आपको मेरी तो
मैं कहूँ है बहुत मुस्तहब दूरियाँ आदरणीय शिज्जू जी आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल का यह शेर मुझे बेहद रास आया ..सादर बधाई के साथ
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