जीवन में कितने चक्रव्यूह
पर घबराना कैसा
पग-पग मिले सघन अरण्य
खूंखार एक सिंह अदम्य
तुझे मिटाने की खातिर
खेले दांव बहु जघन्य
अहो प्रतिद्वंदी ऐसा
पर घबराना कैसा
करके तराश दन्त नक्श
जाना तू उसके समक्ष
नेस्तनाबूत करने को
उसी हुनर में होना दक्ष
कर वार उसी पर वैसा
पर घबराना कैसा
शत्रु हावी हो या पस्त
तू विजयी हो या परास्त
होंसलों की डोरी पकड़
विदग्ध बन, हो आश्वस्त
होने दो जो हो जैसा
पर घबराना कैसा
कुटिल जाल रचे कुतंत्र
मिलें श्रान्ति और षड्यंत्र
मंजिल है कहाँ आसान
उद्वेग से न हो परतंत्र
चाहे चक्रव्यूह जैसा
पर घबराना कैसा
**************
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० कुंती जी, आपकी सराहना से मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ.हार्दिक आभार आपका
कुटिल जाल रचे कुतंत्र
मिलें श्रान्ति और षड्यंत्र
मंजिल है कहाँ आसान
उद्वेग से न हो परतंत्र
चाहे चक्रव्यूह जैसा
पर घबराना कैसा
**************........बहुत प्रेरणास्प्रद रचना.
जीतेन्द्र गीत जी प्रस्तुति पर आपकी सराहना पूर्ण अनुमोदन पाकर हर्षित हूँ बहुत- बहुत शुक्रिया.
जीवन में किसी न किसी मोड़ पर इन्सान को चक्रव्यूह का सामना करना ही पड़ता है, चाहे वह अपनों या दूसरों के द्वारा रचा गया हो, आपकी रचना सकारात्मक रूप से डटकर मुकाबला करने का सन्देश देती है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश जी
प्रिय प्राची प्रस्तुति की विषयवस्तु आपको पसंद आई हार्दिक आभार आपका.
मानव कई-कई स्तर पर कई बार चक्रव्यूह में फंसा छटपटाता है... और जब ऐसे चक्रव्यूह किसी अपने द्वारा ही रचे गए हों तब उनसे बाहर निकलने का हौसला भी पस्त हो जाता है... एक निडर, दृढ़, स्पष्ट दृष्टि और सूझ ही ऐसे किसी चक्रव्यूह को भेद सकती है...
रचना की विषयवस्तु बहुत पसंद आयी...लेकिन शिल्प के स्तर पर अभिव्यक्ति कुछ कमज़ोर लगी.
हृदय से शुभकामनाएं प्रेषित हैं.
सादर.
रचना पर आपका अनुमोदन पाकर उत्साहित हूँ बहुत- बहुत शुक्रिया ब्रजेश जी.
बहुत ही सुन्दर सन्देश देती खूबसूरत रचना! आपको हार्दिक बधाई आदरणीया!
आ. लक्ष्मण जी, आपकी प्रतिक्रिया हमेशा की भाँती उत्साह वर्धन कर नव ऊर्जा भर रही है बहुत- बहुत आभार आपका.
"जीवन में कितने चक्रव्यूह
पर घबराना कैसा" - सुन्दर रचना सार्थक सन्देश देती हुई | विशेषकर आज की युवा पीढ़ी को कठिन संघर्ष कर आगे बढ़ने की
प्रेरणा की बहुत आवश्यकता है, ऐसे में इस तरह की रचना अहम हो जाती है | हार्दिक बधाई आदरणीया
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