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जीवन में कितने चक्रव्यूह

पर घबराना कैसा  

पग-पग मिले सघन अरण्य

खूंखार  एक  सिंह अदम्य

तुझे मिटाने  की खातिर

खेले  दांव  बहु  जघन्य

अहो  प्रतिद्वंदी  ऐसा

पर घबराना कैसा   

 

करके तराश  दन्त नक्श

जाना तू उसके समक्ष

नेस्तनाबूत करने को   

उसी हुनर में होना दक्ष

कर वार उसी पर वैसा  

पर घबराना कैसा 

शत्रु  हावी हो या पस्त

तू विजयी हो या परास्त

होंसलों की डोरी पकड़   

विदग्ध बन, हो आश्वस्त  

होने दो  जो हो जैसा

पर घबराना कैसा

 

कुटिल जाल रचे कुतंत्र  

मिलें श्रान्ति और षड्यंत्र

मंजिल है कहाँ आसान

उद्वेग से न हो परतंत्र

चाहे चक्रव्यूह जैसा

पर घबराना कैसा

**************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2014 at 9:28am

प्रिय वंदना हार्दिक धन्यवाद आपको रचना के भाव रुचिकर लगे.शुभकामनायें  

Comment by vandana on January 30, 2014 at 7:17am

बहुत सुन्दर भाव आदरणीया राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 7:44pm

आ० अखिलेश जी आपकी रचना के मर्म को महसूस करके दी गई प्रतिक्रिया से आश्वस्त हुई लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 7:23pm

आ०श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 7:22pm

आ० मीना पाठक जी रचना व्के उसके  भाव आपको पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका  

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 29, 2014 at 5:12pm

आदरणीया राजेशकुमारी जी,

बहुत सुंदर ,, देश की सेना और युवा पीढ़ी को सार्थक सन्देश देती इस हौसलाअफज़ाई रचना की हार्दिक बधाई ॥ 

Comment by Shyam Narain Verma on January 29, 2014 at 3:28pm
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई....
Comment by Meena Pathak on January 29, 2014 at 2:12pm

बहुत सुन्दर रचना , बहुत बहुत बधाई आप को आ० राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 9:18am

आo अन्नपूर्णा जी आपका बहुत- बहुत आभार. 

Comment by annapurna bajpai on January 28, 2014 at 11:59pm

आ0 राजेश कुमारी जी बहुत सुंदर रचना बहुत बधाई । 

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