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वक्त की आंधी में ....

वक्त की आंधी में ....

कुछ तुमने बढ़ा ली दूरियां
कुछ हम मज़बूर हो गए
अपने अपने दायरों में
इक दूजे से दूर हो गये
चंद लम्हों की मुलाक़ात में
जन्मों के वादे कर लिए
चंद कदम चल भी न पाये
और रास्ते कहीं खो गये
वक्त की आंधी में सारे
स्वप्न गर्द में खो गये
कर न पाये शिकवा कोई
हम दो किनारे हो गये

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Meena Pathak on January 29, 2014 at 1:56pm

बहोत सुन्दर ....बधाई आप को आ० सरन जी | सादर 

Comment by Priyanka singh on January 29, 2014 at 1:22pm

खूब सर .....

Comment by Saarthi Baidyanath on January 29, 2014 at 10:44am

बहुत बढ़िया रचना आदरणीय ...खूब !

Comment by annapurna bajpai on January 29, 2014 at 12:01am

सुंदर रचना , बधाई आपको आ0 सुशील जी । 

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