For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की  चिलमन  उठा के गिराना
वो आँचल  के  कोने  को  मुंह में दबाना

ज़हन में  है  ज़िंदा  वो मंज़र मिलन का
भला   कैसे   भूलूं  मैं  उसका   मनाना

मुहब्बत की   रूदाद क्यूँ अश्कों में भीगी
क्यूँ होता है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना


गुजरती है करवट में तमाम शब हमारी
सलवटों में सिसकता है दिल का फ़साना

रंज होता है क्या ये न जाने थे अब तक
हिज्र में हम तेरी अश्कों को भूले छुपाना

अपनी ख़ल्वत से रहूँ क्यों भला मैं ख़फ़ा
आ गया रास याद बनके उनका  सताना


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 6:50pm

मैंने अपने पिछली टिप्पणी में खोल कर जो लिख दिया है, वही तो  आपके मतले के दोनों मिसरों का वज़्न है, आदरणीय.

यानि, १२२ १२२ १२२ १२२ 

वो (१) पलकों (२२) की (१) चिलमन (२२) उ (१)ठा के (२२) गि (१) राना (२२ )
वो (१) आँचल )२२) के (१) कोने (२२) को (१) मुंह में (२२) द (१) बाना (२२)

यहाँ अण्डरस्कोर शब्द की मात्राएँ आवश्यकतानुसार गिरायी गयी हैं.

इसी वज़्न पर सभी मिसरों को साधते चले जायें.

यह तो हुई पहली और सरल बात. 

मुख्य बात तो यह है, कि आप इस मंच पर ग़ज़ल की बातें या ग़ज़ल की कक्षा समूह को ज्वाइन कर लें और ग़ज़ल की मूलभूत नियमावलियों को यथासंभव कंठस्थ कर जायें. दखियेगा, आप कुछ ही दिनों में इस मंच पर ही नहीं अन्य मंचों पर भी अपनी समझ साझा करने लगेंगे...  :-))) 

सादर

Comment by Sushil Sarna on February 7, 2014 at 6:11pm

आदरणीय सौरभ जी , आपसे बस एक विनती है मेरी इस ग़ज़ल के किसी अशआर की मात्राएँ मुझे बता दें और जहां इसे दुरुस्त करने की जरूरत महसूस हो रही है वो अगर बता देंगे तो भविष्य में मैं अपनी ग़ज़ल विधा के प्रति सतर्क हो जाऊंगा। आपको असुविधा तो होगी उसके लिए क्षमा चाहता हूँ।  सदर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 2:02pm

अभी-अभी आपके व्यक्तिगत मेसेज पर मैंने उत्तर दिया है, आदरणीय सुशील भाईजी. उसका आशय यही है कि आप अपनी रचना से सम्बन्धित बातें रचना के पटल पर ही लिख दें. आपके उसी मेसेज को यहाँ देख रहा हूँ ! ..

सादर धन्यवाद, आदरणीय.

 

Comment by Sushil Sarna on February 7, 2014 at 1:24pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , नमस्कार - मेरे द्वारा प्रेषित ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।  सर सच कहूँ तो मुझे रदीफ़, काफिया और बह्र तो समझ आते हैं लेकिन मात्राओं का ज्ञान ग़ज़ल में समझ में नहीं आया हालांकि हिंदी में मात्राओं को मैं समझता हूँ।  इसके दीर्घ और लघु स्वरों की गिनती हिंदी से कुछ अलग लगती है।  अपने भावों को रदीफ़ और काफिये के नियम के साथ मेल करके ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है।  मुझे ज्ञान तभी मिलेगा जब मैं जो जानता हूँ उसे उसी रूप में मंच पर प्रस्तुत करूं ताकि आप जैसे गुणी जनों की जब नज़र-ए-करम हो तो भावों को वो ज़मीन मिल सके जिसपर मैं भावों की महक के पुष्प खिला सकूं।  । पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 11:32am

आपने बह्र क्या लिया है ? उसकी मात्रा क्या है ? मुझे मतला और आगे के अश’आर के मिसरे अलग-अलग दिख रहे हैं.

क्या १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ की मात्रा है .. यदि हाँ तो इसे ग़ज़ल के साथ लिख दें. और भी मिसरों को सधिये. यदि नहीं, तो बताइये, आदरणीय.

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2014 at 7:21pm

आदरणीय रमेश कुमार चौहान  जी ग़ज़ल पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2014 at 7:20pm


आदरणीया राजेश कुमारी जी ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 6, 2014 at 11:07am

बेहतरीन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2014 at 9:11pm

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति दाद कबूलें आ० सुशील जी 

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2014 at 7:52pm

आदरणीया मीना पाठक जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service