वो पलकों की चिलमन …
वो पलकों की चिलमन उठा के गिराना
वो आँचल के कोने को मुंह में दबाना
ज़हन में है ज़िंदा वो मंज़र मिलन का
भला कैसे भूलूं मैं उसका मनाना
मुहब्बत की रूदाद क्यूँ अश्कों में भीगी
क्यूँ होता है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना
गुजरती है करवट में तमाम शब हमारी
सलवटों में सिसकता है दिल का फ़साना
रंज होता है क्या ये न जाने थे अब तक
हिज्र में हम तेरी अश्कों को भूले छुपाना
अपनी ख़ल्वत से रहूँ क्यों भला मैं ख़फ़ा
आ गया रास याद बनके उनका सताना
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मैंने अपने पिछली टिप्पणी में खोल कर जो लिख दिया है, वही तो आपके मतले के दोनों मिसरों का वज़्न है, आदरणीय.
यानि, १२२ १२२ १२२ १२२
वो (१) पलकों (२२) की (१) चिलमन (२२) उ (१)ठा के (२२) गि (१) राना (२२ )
वो (१) आँचल )२२) के (१) कोने (२२) को (१) मुंह में (२२) द (१) बाना (२२)
यहाँ अण्डरस्कोर शब्द की मात्राएँ आवश्यकतानुसार गिरायी गयी हैं.
इसी वज़्न पर सभी मिसरों को साधते चले जायें.
यह तो हुई पहली और सरल बात.
मुख्य बात तो यह है, कि आप इस मंच पर ग़ज़ल की बातें या ग़ज़ल की कक्षा समूह को ज्वाइन कर लें और ग़ज़ल की मूलभूत नियमावलियों को यथासंभव कंठस्थ कर जायें. दखियेगा, आप कुछ ही दिनों में इस मंच पर ही नहीं अन्य मंचों पर भी अपनी समझ साझा करने लगेंगे... :-)))
सादर
आदरणीय सौरभ जी , आपसे बस एक विनती है मेरी इस ग़ज़ल के किसी अशआर की मात्राएँ मुझे बता दें और जहां इसे दुरुस्त करने की जरूरत महसूस हो रही है वो अगर बता देंगे तो भविष्य में मैं अपनी ग़ज़ल विधा के प्रति सतर्क हो जाऊंगा। आपको असुविधा तो होगी उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। सदर
अभी-अभी आपके व्यक्तिगत मेसेज पर मैंने उत्तर दिया है, आदरणीय सुशील भाईजी. उसका आशय यही है कि आप अपनी रचना से सम्बन्धित बातें रचना के पटल पर ही लिख दें. आपके उसी मेसेज को यहाँ देख रहा हूँ ! ..
सादर धन्यवाद, आदरणीय.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , नमस्कार - मेरे द्वारा प्रेषित ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर सच कहूँ तो मुझे रदीफ़, काफिया और बह्र तो समझ आते हैं लेकिन मात्राओं का ज्ञान ग़ज़ल में समझ में नहीं आया हालांकि हिंदी में मात्राओं को मैं समझता हूँ। इसके दीर्घ और लघु स्वरों की गिनती हिंदी से कुछ अलग लगती है। अपने भावों को रदीफ़ और काफिये के नियम के साथ मेल करके ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है। मुझे ज्ञान तभी मिलेगा जब मैं जो जानता हूँ उसे उसी रूप में मंच पर प्रस्तुत करूं ताकि आप जैसे गुणी जनों की जब नज़र-ए-करम हो तो भावों को वो ज़मीन मिल सके जिसपर मैं भावों की महक के पुष्प खिला सकूं। । पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आपने बह्र क्या लिया है ? उसकी मात्रा क्या है ? मुझे मतला और आगे के अश’आर के मिसरे अलग-अलग दिख रहे हैं.
क्या १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ की मात्रा है .. यदि हाँ तो इसे ग़ज़ल के साथ लिख दें. और भी मिसरों को सधिये. यदि नहीं, तो बताइये, आदरणीय.
आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी ग़ज़ल पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
बेहतरीन
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति दाद कबूलें आ० सुशील जी
आदरणीया मीना पाठक जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार ।
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