1) बंधन बांधो नेह का पुनि पुनि जतन लगाय ।
चुन चुन मीत बनाइये खोटे जन बिलगाय ॥
2) प्रेम कुटुम्ब समाइए सागर नदी समाय ।
ज्यों पंछी आकाश मे स्वतंत्र उड़ता जाय ॥
3) धोखा झूठ फरेब औ फैला भ्रष्टाचार ।
फैली शासनहीनता है पसरा व्यभिचार ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय सौरभ जी आपने सही कहा शायद मै आ0 बृजेश जी के कहने का मतलब नहीं समझ पाई । आपका हार्दिक आभार अपने मार्ग दर्शन दिया । बल्कि जो चीज मैंने ध्यान नहीं दी वह आपने इंगित की है । सादर
आप आज की रचनाकार हैं. तो आज की भाषा बोलिये न दोहों में ! फिर, दोहों के माध्यम से क्या केवल उपदेश दिया जा सकता है ?
आपके पहले दोनों दोहे तो लगता है किसी गुरु जी का उपदेश पढ़ रहे हैं, वो भी चौदहवीं-पन्द्रहवीं सदी की भाषा में !
बृजेश भाई का भी यही कहना है उनकी टिप्पणी में, जिसे संभवतः आप समझ नहीं पायीं.
फिर इसे देखिये -
धोखा झूठ फरेब औ फैला भ्रष्टाचार ।
फैली शासनहीनता है पसरा व्यभिचार.
ओके.. ठीक है .. लेकिन, प्रश्न उठता है, तो ? धोखा, झूठ, फ़रेब, भ्रष्टाचार, व्यभिचार सब है, मान लिया. तो ? आदरणीया, आपका उक्त दोहा यहाँ मौन है. यानि यहाँ तथ्यात्मक बिम्ब न हो कर कुछ संज्ञायें हैं. इन संज्ञाओं से इंगित उभर कर आने चाहिए न.. मेरा ये कहना है.
विश्वास है, मैं स्पष्ट कर पाया, आदरणीया.
सादर शुभेच्छाएँ
आदरणीय सौरभ जी आपका पुनः आभार । यदि गुरु शिष्य की कमियों को सख्ती से नहीं बताएगा तो शिष्य भी मौज मे ही रहेगा । मेरे प्रयास को आपकी टिप्पणी रूप मे सराहना ही मिली है , मै आपकी कलम से वाह लिखवा ही लूँगी । ऐसा मेरा दृढ़ निश्चय है । आप अपनी टिप्पणियों के माध्यम से मुझे स्नेह देते रहिए । सादर
आपके प्रयास पर इतना कठिन लिखना उचित तो नहीं लेकिन आदरणीया .. दोहे नहीं रुचे ... . :-(((
बृजेश भाई ने जो कहा है उसपर न केवल गंभीरता से सोचिये, बल्कि दोहा छंद को शिल्प ही नहीं कथ्य के हिसाब से भी समझने का प्रयास कीजिये.
मुझे खूब मालूम है कि आप आजकल अत्यंत गहन प्रयास कर रही हैं. अतः मेरा कुछ सार्थक कहना धर्म हो जाता है.
हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत ही सुंदर दोहे है, भावपूर्ण इस अभिव्यक्ति के लिये सादर बधाई
आ0 कुंती दीदी उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार । यूं ही उत्साह बढ़ती रहिए ।
बहुत सुंदर दोहे. आपकी रचनाएँ दिन प्रति दिन एक स्तर उपर जा रही है. हार्दिक बधाई अन्नपूर्णा जी.
आ0 बृजेश जी यहाँ पर चुनि चुनि को पुनि पुनि के साथ लिया है यदि ये गलत है तो बदल दूँगी । सादर
बहुत ही प्रभावी दोहे ...बहुत बढ़िया ! नमन सहित
सुन्दर दोहे! आपको हार्दिक बधाई!
'चुनि चुनि' को यदि 'चुन चुन' लिखा जाता तो क्या नुकसान होता! शब्द तो अपनी जेब से खर्च करने होते हैं, तो बिना सोचे-समझे खर्च क्यों करना.
सादर!
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