तरसे दरशन को ये नैना
थकी राह निहार दिन रैना,
तुम बिन इक पल मिले न चैना
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
हृदय दीप सांसों की बाती
ज्योति जलाय निहारूँ झाँकी
असुअन पुष्प चढ़े दिन राती
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
प्रीत तेरी रम गई ऐसी
सुधि न रही अब तन,मन,धन की
लाज शरम तजि हुई बावरिया ||
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
टेर-टेर विकल भई काया
तकि-तकि राह उमर गवांया
झर-झर नीर बहावत अखियाँ
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
इक-इक कर बिसर गयीं बतियाँ
नीर बहा हेराई अखियाँ
भँवर बीच है जीवन नइया
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
श्याम रंग से रंग चुनरिया
मन भाये मोरा साँवरिया
बैरन भई मोरी बसुरिया
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
पल-पल तरसत जिय हुलसाए
शीत,अनल,जल समझ न आए
चरण शरण लो हे साँवरिया
अब तो प्रभु दर्शन दे दो
बीती जाये उमरिया ||
मीना पाठक
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया अनीता
आदरनीया प्राची जी इतने अच्छे से समझाने के लिए तहेदिल से आभार स्वीकार कीजिये ..प्रयास कर रही हूँ शिल्प को थामने की पर हर बार कमी रह जाती है ... :((
बहुत ही सुन्दर भाव है दी, प्राची जी की बातें गौर करने लायक हैं, मैं भी बहुत नही जानती लेकिन आपके माध्यम से मुझे भी सीखने को मिलेगा, ऐसी उम्मीद है। सुन्दर रचना के लिए बधाई।
प्रभु प्रेम में सर्वस समर्पित करती सुन्दर भाव प्रस्तुति... इसके लिए आपको साधुवाद आदरणीया
भावों को इस तरह से सहेजना कि मनोदशा भी अभिव्यक्त हो और प्रस्तुति भी संयत रहे यह सम्प्रेषण के लिए बहुत ज़रूरी है..
जब रचनाकर्म आपकी रूचि है तो सम्प्रेषण के सार्थक स्पष्ट आयामों को समझने का आग्रही भी आपको होना ही चाहिए....
क्या रचना आंचलिक लिखनी है या सामान्य हिन्दी में ?
क्या हर बंद का संयोजन एक सा रखना है ?
तुकांतता का निर्वाह कहाँ कहाँ किया जाता है और कैसे किया जाता है ?
क्या यही भाव थोड़े कम शब्दों में और सांद्रता के साथ प्रस्तुत किये जा सकते हैं ?
किस तरह की अंतर्गेयता व्यस्था रखनी है ?
ये सब कुछ मूलभूत बाते हैं जो रचना के ढाँचे को तैयार करती हैं... फिर उनमें अपने भाव पिरोने होते हैं.
इन सात्विक समर्पण भावों को सुदृढ़ शिल्प का आधार न मिल पाने के कारण प्रस्तुति बिखरी बिखरी सी लगी..
पुनः इन भावों की शुचिता के लिए आपको हृदय तल से बधाई
उम्मीद है कि मेरा कहा सार्थक लगेगा .
सस्नेह शुभकामनाएं
आदरणीय नीरज 'प्रेम' जी हृदयतल से आभार स्वीकारें
आदरणीय मदन मोहन जी बहुत बहुत आभार
आदरणीय सौरभ सर जी रचना को समय देने के लिए हृदय से आभार | सादर
मैंने एक गाना बचपन में लिखा था उस से काफी मिलता जुलता आपने लिखा है
बीती जाए उमरिया , अब तो आजा सावंरिया ,
तेरी राह तके दिन रैना ।
मेरे प्यासे प्यासे नैना ।
बहुत बहुत तहे दिल से बधाई आपको
और बहु अच्छा लगा भावों और शब्दों का ये मेल देख कर ।
जय हो.. शुभ-शुभ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online