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गजल - बदनाम (अखंड गहमरी)

2122  2122   2122   2122

 

इस जमाने में हमे तुमकेा बुलाना भी नहीं हैं

तड़पते ही रहे मगर जख्‍म दिखाना भी नहीं है

चाँद छुप छुप जा रहा क्‍यों बादलो के संग देखो

राज की ये बात बेवफा को बताना भी नहीं है

दर्द ही हमको मिला जो दिल लगाया था किसी से

जख्‍म जो दिल पर लगे  उन्‍हे दिखाना भी नहीं है

आई फिर ना वो बहारे जो चली इस बार गई पर

दर्द फूलो का बहारो को बताना भी नहीं है

नाम भी बदनाम उसका प्‍यार में ना कर सके पर

मर गये तो चेहरा मेरा  दिखाना भी नहीं है

 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2014 at 10:40pm

कोशिश अच्छी हुई है. फिर भी कसर है.

तड़पते - १२२  इस लिए मिसरा बेबह्र हुआ 

बेवफ़ा - २१२  इस लिए मिसरा बेबह्र हुआ

उन्हें - १२ इस लिए मसरा बेबह्र है

बार गई पर - २११२२ एक अतिरिक्त मात्रा आने से मिसरा बेबह्र है

चेहरा - २२ की मात्रा पर बाँधते हैं ..  :-((  ..

और ग़ज़लों में ना के प्रयोग से बचें और ना की जगह का प्रयोग करें

प्रयासरत रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by Akhand Gahmari on February 3, 2014 at 1:58pm

 उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय गुरूवर गिरिराज भंडारी जी

Comment by Akhand Gahmari on February 3, 2014 at 1:57pm

 उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीया मीना पाठक जी

Comment by Akhand Gahmari on February 3, 2014 at 1:57pm

 उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय लक्षमण जी

Comment by Akhand Gahmari on February 3, 2014 at 1:56pm

 उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय जितेन्‍द्र गीत जी

Comment by Akhand Gahmari on February 3, 2014 at 1:56pm

 उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय ब्रजेश नीरज जी

Comment by बृजेश नीरज on February 2, 2014 at 10:09pm

सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 9:31am

इस जमाने में हमे तुमकेा बुलाना भी नहीं हैं

तड़पते ही रहे मगर जख्‍म दिखाना भी नहीं है.............वाह! शानदार मतला

दर्द ही हमको मिला जो दिल लगाया था किसी से

जख्‍म जो दिल पर लगे  उन्‍हे दिखाना भी नहीं है...........बहुत सुंदर

बहुत बढ़िया गजल आदरणीय अखंड जी, हार्दिक बधाई आपको

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:35am

आदरणीय अख्ंड भाई , एक अच्छी ग़ज़ल के लिए  आपको दिल से बधाइयाँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2014 at 6:37pm

आदरणीय अख्ंड भाई , ग़ज़ल का बहुत सुन्दर प्रयास किया है , आपको दिल से बधाइयाँ ॥ कुछ मिसरे बे बह्र हो रहे हैं , फिर से देख लीजियेगा ॥

                 

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