सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए -
वज्न 2122 / 2122 / 2122 / 212 (2121)
कोई तुझसा होगा भी क्या इस जहाँ में कारसाज
डर कबूतर को सिखाने रच दिए हैं तूने बाज
तीरगी के करते सौदे छुपछुपा जो रात - दिन
कर रहे हैं वो दिखावा ढूँढते फिरते सिराज
ज्यादती पाले की सह लें तो बिफर जाती है धूप
कर्ज पहले से ही सिर था और गिर पड़ती है गाज
जो ज़मीं से जुड़ के रहना मानते हैं फ़र्ज़-ए-जाँ
वो ही काँधे को झुकाए बन के रह जाते मिराज
हम भला बढ़ते ही कैसे आड़े आती है ये सोच
"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज"
खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे
मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज
पंछियों के खेल या फिर तितलियों का बाँकपन
मौज से गर देख पाऊं सुधरे शायद ये मिज़ाज
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"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज" तरही मिसरा आदरणीय शायर अल्लामा इक़बाल साहब की ग़ज़ल से है |
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
कवि न होऊं नहिं बचन प्रवीनू..अति मति मंद सकल गुण हीनू...सात के सातों शेरों में..सातों समुद्रों की गंभीरता प्राप्त हुई..विशेषकर छठवां शेर तो प्रशांत महासागर प्रतीत हुआ..बधाई हो..
खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे
मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज.....बहुत खूब वंदना जी..
अरे इस तरह का काफिया कई बार मन में संशय पैदा कर गया आज थोड़ा संशय दूर हुआ ,
इस कामयाब शानदार गजल के लिए बधाई वंदना जी
खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे
मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज
बहुत खुबसूरत गजल आदरणीया वंदना जी
आदरणीय वीनस सर , इस गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल को आपका समर्थन मिल जाने से अभिभूत हूँ काफ़िया गलत न हो जाए इस बात की चिंता थी|
सभी विद्वजनों से एक बात और जानना चाहती हूँ कि अगर इस प्रकार की ग़ज़ल में किसी शेर में उला में ज़ से खत्म होने वाला शब्द रहता तो क्या कोई दोष माना जाएगा जैसे-
हम भला बढ़ते ही कैसे रहता है ये इम्तियाज़
"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज" कृपया बताइयेगा
खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे
मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज ............ जिंदाबाद जिंदाबाद
बेहद शानदार आला दर्जे की ग़ज़ल कही है ... इकबाल साहब की जमीन को छूना अपने आप में हौसले की बात है
आदरणीय गिरिराज सर बहुत२ आभार उत्साहवर्धन के लिए
आदरणीया मीना जी आपकी पवित्र भावनाओं से मन प्रसन्न हुआ |
आदरणीया राजेश दी बहुत२ आभार मेरा हौसला बढाने के लिए
फ़र्ज़-ए-जाँ को 212के रूप में लिया जा सकता है आदरणीय वीनस सर की पोस्ट में दर्दे दिल का उदाहरण है जिसे 212 या 222 गिने जा सकने पर सहमति जाहिर की गयी है
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