शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत /
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार /
रात सुहानी हो गई उजली है अब भोर
डाली डाली फूल हैं ,हरियाली चहुँ ओर /
निर्मल अम्बर है हुआ, पाया धरा निखार
जर्रे जर्रे में बसा , कुदरत में है प्यार /
रंग बिरंगी तितलियाँ , मन में भरें उमंग
प्यार हिलोरें ले रहा , अब प्रीतम के संग /
पेड़ आम के बौर से, इतरायें हैं आज
मन को है भाने लगी, कोयल की आवाज /
............मौलिक व अप्रकाशित .......
Comment
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बसंत को केन्द्र में रख कर हुई इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. आदरणीया
शुभ-शुभ
शुक्रिया अन्नपूर्णा जी
बहुत सुंदर बासन्ती दोहवली , बहुत बधाई आपको आ0 सरिता जी ।
जितेन्द्र भाई शुक्रिया
बसंत ऋतू पर बहुत सुंदर दोहावली, हार्दिक बधाई आदरणीया सरिता जी
आदरणीय अनिल जी हार्दिक आभार
आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया
कुन्ती दीदी हार्दिक आभार
बशंत ऋतू के आगमन का सुन्दर अभिव्यक्ति.....................
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